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जैन दर्शन में प्रमाण मीमांसा
(३) एकाथिकानुयोग-एक अर्थ वाले शब्दो का विचार। जैसे-जीव, प्राणी, भूत, सत्त्व आदि-आदि जीव के पर्यायवाची नाम है | (४) करणानुयोग-साधन का विचार (साधकतम पदार्थ-मीमांसा)
जेसे-जीव काल, स्वभाव, नियति, कर्म और पुरुषार्थ पाकर कार्य मे प्रवृत्त होता है।
(५) अर्पितानर्पितानुयोग-मुख्य और गौण का विचार (भेदाभेद'विवक्षा)
जैसे-जीव अमेद-दृष्टि से जीव मात्र है और भेद-दृष्टि की अपेक्षा वह दो प्रकार का है-बद्ध और मुक्त । बद्ध के दो भेद हैं-(१) स्थावर (२) त्रस, आदि-आदि।
(६) भावितामावितानुयोग–अन्य से प्रभावित और अप्रभावित विचार।
जैसे-जीव की अजीव द्रव्य या पुद्गल द्रव्य प्रभावित अशुद्ध दशाएं, पुद्गल मुक्त स्थितिया शुद्ध दशाएं।
(७) बाह्याबाह्यानुयोग-सादृश्य और वैसादृश्य का विचार।
जैसे-सचेतन जीव अचेतन आकाश से बाह्य (विसदृश ) है और आकाश की भाति जीव अमूर्त है, इसलिए वह आकाश से अबाह्य (सदृश) है।
(८) शाश्वताशाश्वतानुयोग-नित्यानित्य विचार। जैसे-द्रव्य की दृष्टि से जीव अनादि-निधन है, पर्याय की दृष्टि से वह नए-नए पर्यायो में जाता है।
(६) तथाशानअनुयोग-सम्यग् दृष्टि जीव का विचार । (१०) अतथाज्ञानअनुयोग-असम्यग् दृष्टि जीव का विचार ।
एक विषय पर अनेक विचारकों की अनेक मान्यताएं अनेक निगमननिष्कर्ष होते हैं। जैसे आत्मा के वारे मे
अक्रियावादीनास्तिक • आत्मा नही है । क्रियावादी आस्तिक दर्शनो मे: