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बिगड़ने की क्रियाएँ होती रहती हैं, वह पुद्गल है। अचेतन जड़ पदार्थ को पूरणगलन स्वभाव के कारण ही पुद्गल कहा गया है। जो पूरें-गलें, टूटे-फूटें, बनेंबिगड़ें वे सब पुद्गल द्रव्य हैं। हम जो कुछ देखते हैं, खाते-पीते हैं, सूंघते हैं, छूते हैं और सुनते हैं, वह सब पुद्गल द्रव्य है। इसीलिए जैनागम ग्रन्थों में पुद्गल का लक्षण स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण वाला कहा गया है।' अर्थात् जिस में आठ प्रकार का स्पर्श (कोमल, कठोर, हलका, भारी, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष), पाँच प्रकार का रस (खट्टा, मीठा, कडुवा, कषायला और चरपरा), दो प्रकार का गन्ध (सुगन्ध और दुर्गन्ध) और पाँच प्रकार का वर्ण (काला,पीला, नीला, लाल, और सफेद) ये बीस गुण पाये जाते हैं, वह पुद्गल द्रव्य है। वह रूपी है,2 अजीव है, नित्य है, अवस्थित है और लोक का एक द्रव्य है। छहों द्रव्यों में एक पुद्गल द्रव्य ही मूर्तिक है, शेष द्रव्य अमूर्तिक हैं। न्यायदर्शनकार पृथ्वी, जल, तेज और वायु को जुदा द्रव्य मानते है; क्योंकि उनकी मान्यता के अनुसार पृथ्वी में रूप, रस, गन्ध
और स्पर्श चारों गुण पाये जाते हैं, जल में गन्ध के सिवाय शेष तीन ही गुण पाये जाते हैं, तेज में गन्ध और रस के सिवा शेष दो ही गुण पाये जाते हैं और वायु में केवल एक स्पर्श ही गुण पाया जाता है। अत: चारों के परमाणु जुदे-जुदे हैं। अर्थात् पृथ्वी के परमाणु जुदे हैं, जल के परमाणु जुदे हैं, तेज के परमाणु जुदे हैं और वायु के परमाणु जुदे हैं। अत: ये चारों द्रव्य जुदे-जुदे हैं; किन्तु जैनदर्शन का कहना है कि सब परमाणु एक जातीय ही हैं और उन सभी में चारों गुण पाये जाते हैं। किन्तु उनसे बने हुए द्रव्यों में से किसी-किसी गुण की प्रतीति नहीं होती, उसका कारण उन गुणों का अभिव्यक्त न हो सकना ही है जैसे-पृथ्वी में जल का सिंचन करने से गन्धगुण व्यक्त होता है इसलिए उसे केवल पृथ्वी का ही गुण नहीं माना जा सकता। आँवला खाकर पानी पीने से पानी का स्वाद मीठा लगता है, किन्तु वह स्वाद केवल पानी का ही नहीं है, आँवले का स्वाद भी उसमें सम्मिलित है। इसी प्रकार अन्य में भी समझना चाहिए। इसके सिवाय जल से मोती उत्पन्न होता है जो पार्थिव माना जाता है, जंगल में बाँसों की रगड़ से अग्नि उत्पन्न हो जाती है, जौ के खाने से पेट में वायु उत्पन्न होती है। इससे सिद्ध है कि पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु के परमाणुओं में भेद नहीं है। जो कुछ भेद है, वह केवल परिणमन का भेद है अतः सभी में स्पर्शादि चारों गुण मानने चाहिए और इसीलिए पृथ्वी आदि चार द्रव्य नहीं हैं; किन्तु एक द्रव्य है।
ऊपर कहे गये स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण, ये चार मुख्य भेद पुद्गल में पाये जाते हैं, पर इन के उक्त प्रकार से अवान्तर भेद बीस होते हैं उनमें भी प्रत्येक के
नयवाद की पृष्ठभूमि :: 31
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