________________
और पर्याय को मुख्य करके ग्रहण करता है उसे पर्यायार्थिक नय कहते हैं। अतः द्रव्यार्थिक नय का विषय द्रव्य है और पर्यायार्थिक नय का विषय पर्याय है। ____ जैनदर्शन के अनुसार जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है वस्तु द्रव्य-पर्यायात्मक या सामान्य-विशेषात्मक है। द्रव्य और पर्याय को या सामान्य और विशेष को देखने वाली दो आँखें हैं, द्रव्यार्थिक नय और पर्यायार्थिक नय। पर्यायार्थिक दृष्टि को सर्वथा बन्द करके जब केवल द्रव्यार्थिक दृष्टि से देखते हैं तो नरक, तिर्यंच, मनुष्य, देव और सिद्धत्व पर्याय रूप विशेषों में व्यवस्थित एक जीव-सामान्य के ही दर्शन होने से सब जीव-द्रव्य रूप ही प्रतिभासित होता है और जब द्रव्यार्थिक दृष्टि को सर्वथा बन्द करके केवल पर्यायार्थिक दृष्टि से देखते हैं तो जीव द्रव्य में व्यवस्थित नरक, तिर्यंच, मनुष्य, देव, सिद्धत्व पर्यायों के पृथक्-पृथक् दर्शन होते हैं और जब द्रव्यार्थिक तथा पर्यायार्थिक दृष्टियों को एक साथ खोल कर देखते हैं तो नरक, तिर्यंच, मनुष्य, देव और सिद्धत्व पर्यायों में व्यवस्थित जीव द्रव्य और जीवद्रव्य में व्यवस्थित नरक, तिर्यंच मनुष्य, देव और सिद्धत्व पर्याय एक साथ दिखाई देती हैं। अत: एक दृष्टि से देखना एक देश को देखना है और दोनों दृष्टियों से देखना सब वस्तु को देखना है। इस तरह वस्तु को देखने की ये दो दृष्टियाँ हैं। इन्हीं को द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नय कहते हैं।
द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नय के भेद-प्रभेद-द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक इन दोनों नयों के दो-दो भेद हैं। अध्यात्म द्रव्यार्थिक, अध्यात्म पर्यायार्थिक, शास्त्रीय द्रव्यार्थिक और शास्त्रीय पर्यायार्थिक। इनमें से अध्यात्म द्रव्यार्थिक नय के दस भेदं हैं" और अध्यात्म पर्यायार्थिक नय के छह भेद हैं। शास्त्रीय द्रव्यार्थिक नय के तीन भेद हैं-नैगम, संग्रह और व्यवहार। नैगम नय के तीन भेद हैं भूत, भावि और वर्तमान । संग्रह नय के दो भेद हैं-सामान्य संग्रह और विशेष संग्रह। व्यवहार नय के दो भेद हैं-सामान्य संग्रहभेदक व्यवहार और विशेष संग्रहभेदक व्यवहार। इस प्रकार शास्त्रीय द्रव्यार्थिक के सात भेद हैं। शास्त्रीय पर्यायार्थिक के चार भेद हैं-ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ और एवंभूत नय। इनमें भी ऋजुसूत्र नय के दो भेद हैं2- सूक्ष्म ऋजुसूत्र और स्थूल ऋजुसूत्र। शब्द, समभिरूढ और एवंभूत नय, इनके एक-एक ही भेद हैं। उपनयों के तीन भेद है-सद्भूत, असद्भूत और उपचरित। इनमें सद्भूत के दो भेद हैं, असद्भूत के तीन भेद हैं और उपचरित के भी तीन भेद हैं। इस प्रकार उक्त नयों के कुल छत्तीस भेद हैं। नयों के इन भेदप्रभेदों से आचार्य देवसेन, माइल्ल धवल आदि सभी सहमत हैं। सभी ने इन नयों
नयों का सैद्धान्तिक दृष्टिकोण तथा उनके भेद-प्रभेद :: 227
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org