Book Title: Jain Darshan me Nayvad
Author(s): Sukhnandan Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 285
________________ जैनदर्शन के अनुसार, वस्तु का सम्यग्ज्ञान प्रमाण और नय से होता है। स्वपर-प्रकाशक ज्ञान ही प्रमाण है। ज्ञान आत्मा का स्वरूप है, अतः उसे आत्मा शब्द से भी कहते हैं। अनन्तधर्मात्मक वस्तु के समस्त धर्मों को ग्रहण करने वाला ज्ञान प्रमाण होता है और उस वस्तु के किसी एक धर्म को जानने वाले ज्ञान को नय कहते हैं। जैसे–'अयं घट:' यह ज्ञान प्रमाण है; क्योंकि इसमें घट के रूप, रस, गन्ध और स्पर्श तथा कनिष्ठ-ज्येष्ठ आदि समग्र धर्मों का एक साथ बोध हो जाता है, परन्तु जब यह कहा जाता है कि 'रूपवान् घटः' तब केवल घट के अनेक धर्मों में से 'रूप' का ही परिज्ञान होता है, उसके अन्य धर्म रस, गन्ध और स्पर्श आदि का नहीं। अनन्तधर्मात्मक वस्तु के परिज्ञान में अंश कल्पना ही वस्तुत: नय है। अतः अंशी (पदार्थ या वस्तु) के किसी एक अंश (धर्म) का ज्ञान 'नय' और सर्व अंशों का ज्ञान 'प्रमाण' कहलाता है। प्रमाण और नय में से प्रमाण को तो प्रायः सभी जैन जैनेतर दर्शन मानते हैं, किन्तु नय की मान्यता केवल जैनदर्शन में ही पाई जाती है। वस्तुतः 'नयवाद' जैनदर्शन की अपनी एक विशिष्ट और व्यापक विचार-पद्धति है। जैनदर्शन प्रत्येक वस्तु का विश्लेषण 'नयवाद' से करता है। जैनदर्शन में एक भी सूत्र और अर्थ ऐसा नहीं है, जो नय-शून्य हो। यह 'नयवाद' अनेकान्तवाद या स्याद्वाद की देन है, इसी से जैनेतर दर्शनों में प्रमाण-विवेचन तो मिलता है, किन्तु नय का उल्लेख उनमें नहीं पाया जाता है। अनेकान्तवाद के दो फलितवाद हैं-सप्तभंगीवाद और नयवाद। अतः अनेकान्तवाद, स्याद्वाद्, नयवाद और सप्तभंगीवाद ये सब जैनदर्शन की विशेषताएँ हैं। यह जैनदर्शन की दार्शनिक जगत् को सबसे बड़ी देन है। इनके उक्त समस्त विवेचन द्वारा यह निष्कर्ष निकलता है कि शाश्वत सुख और शान्ति प्राप्त करने के लिए वस्तु-स्वरूप का परिज्ञान आवश्यक है और वस्तुस्वरूप के सम्यग्ज्ञान के लिए अनेकान्तवाद, स्याद्वाद, नयवाद और सप्तभंगीवाद का सम्यग्ज्ञान आवश्यक है। इनके परिज्ञान से ही वस्तु-स्वरूप का बोध हो सकेगा, उसकी यथार्थ सिद्धि हो सकेगी। अनेकान्त का अर्थ है, जिसमें अनेक धर्म पाये जाते हैं अर्थात् परस्पर विरोधी प्रतीत होने वाले अनेक धर्मों का एक ही वस्तु में होने का नाम अनेकान्त है। स्याद्वाद उस अनेक धर्मात्मक वस्तु का प्रतिपादक है तो नयवाद अनेकान्तात्मक वस्तु के विभिन्न धर्मों का समन्वय करने वाला है तथा एक धर्म के विषय में सम्बन्धित विविध मन्तव्यों के समन्वय के लिए सप्तभंगीवाद है। प्रमाण, नय, निक्षेप, अनेकान्त और स्यावाद तथा सप्तभंगीवाद ये सब वस्तु अध्ययन का निष्कर्ष :: 283 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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