Book Title: Jain Darshan me Nayvad
Author(s): Sukhnandan Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 289
________________ तिमिर नष्ट हो जाता है। साधक को आत्मानुभूति होने के साथ स्व स्वरूप की उपलब्धि होने लगती है और जीवन अमल-धवल बन जाता है। इसप्रकार स्यावाद और नयवाद के द्वारा जहाँ सैद्धान्तिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक जीवन-पक्ष साधा जा सकता है वहाँ लौकिक जीवन-व्यवहार के पक्ष को भी सुव्यवस्थित किया जा सकता है। ___ वास्तव में जब-जब विवाद, संघर्ष, और बड़े-बड़े युद्ध हुए, वे सब एकांगी दृष्टिकोण और विचारधारा से ही हुए। आज विश्व की अशान्ति और बर्बरता का एकमात्र कारण है तो यही है कि दूसरों के विचारों के प्रति असहिष्णुता और उनके मन्तव्यों का अनादर या उपेक्षा करना। अतः स्याद्वाद और नयवाद का सिद्धान्त यही बताता है कि केवल अपने विचारों और सिद्धान्तों को महत्व न देकर दूसरों के विचारों के प्रति सहिष्णुता रखना और दूसरों के सिद्धान्तों का आदर करना जब हम स्वीकार कर लेते हैं तो सहज ही संघर्ष, विवाद और युद्ध समाप्त हो जाते हैं। आज के शब्दों में अनेकान्त, स्याद्वाद और नयवाद का चिन्तन और मनन प्रजातान्त्रिक पद्धति और समाजवादी समाजरचना की आधारशिला है। इसीलिए बड़े-बड़े दार्शनिक और चिन्तक भी यह मानते हैं कि दर्शन के क्षेत्र में अनेकान्त, स्याद्वाद और नयवाद का सिद्धान्त एक मौलिक देन है। आज विश्व में शान्तिस्थापना के लिए अनेकान्त, स्याद्वाद और नयवाद के समन्वयवादी दृष्टि को स्वीकार करने की महती आवश्यकता है। हिंसा और भय से पीड़ित प्राणियों के लिए अहिंसा के अतिरिक्त कोई दूसरा मार्ग नहीं है। इसी प्रकार पारस्परिक संघर्ष, विवाद और युद्धों को समाप्त करने के लिए उक्त सिद्धान्तों के समन्वयवादी दृष्टिकोण को अपनाने के अतिरिक्त दूसरा कोई उपाय नहीं है। ... स्याद्वाद और नयवाद मन के टकरावों और तनावों को रोकता है, जिस प्रकार चौराहे पर खड़ा हुआ सिपाही अपने हाथों के संकेतों से चारों ओर से आने-जाने वाले पैदल यात्रियों, बसों, कारों और तांगों आदि के टकरावों को रोकता है। अतः जीवन को सुखी और शान्त बनाने के लिए समन्वयवादी दृष्टिकोण को अपनाना आवश्यक है। अन्यथा पिता-पुत्र, भाई-भाई, देश, समाज और राष्ट्रों में टकराव, तनाव, संघर्ष और युद्ध प्रारम्भ हो जाएँगे, समस्त विश्व में अशान्ति का वातावरण छा जाएगा, मानवता त्रस्त हो उठेगी और चारों और 'त्राहि-त्राहि' की ध्वनि गूंज उठेगी। आज सारा संसार भौतिकवाद की ओर अग्रसर हो रहा है। वह धनसंचय और अणुशक्ति के विकास में लगा हुआ है। उसके विनाशकारी प्रयोगों को संसार देख चुका है। इसलिए आज बड़े-बड़े राष्ट्र भयभीत और एक दूसरे के प्रति अविश्वस्त अध्ययन का निष्कर्ष :: 287 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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