Book Title: Jain Darshan me Nayvad
Author(s): Sukhnandan Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 290
________________ हो रहे हैं। इसीलिए अणु अस्त्रों की होड़ में लगे देश भी विरोधों को छोड़कर एक मंच पर बैठकर सह-अस्तित्व का चिन्तन करने लगे हैं। वैज्ञानिक अपने द्वारा निर्मित विनाशक यन्त्रों और अस्त्रों से स्वयं परेशान हैं और बहुमत से स्वीकार करने लगे हैं कि बिना वैचारिक सामंजस्य और समन्वय के सुख-शान्ति सम्भव नहीं है। ___ आज मानव ग्रहों और चाँद तक तो पहुँच गया, किन्तु मानवता और आत्मशान्ति उसकी पहुँच के बाहर हो रहे है; क्योंकि उस ओर उसका लक्ष्य ही नहीं है। वास्तव में सच्चाज्ञान वही है जो जीवन में उतरे। आज विज्ञान की प्रगति से ज्ञान का क्षेत्र तो व्यापक हो गया, लेकिन उसका सम्बन्ध जीवन से टूट गया है इसीलिए आज बार-बार कहा जा रहा है कि विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय होना चाहिए तभी कुछ शान्ति हो सकती है, किन्तु वही समन्वय नहीं हो पा रहा आज सहचारिता, सहिष्णुता और भावात्मक एकता की महती आवश्यकता है, इसी से विश्व में शान्ति की स्थापना हो सकती है। अत: यह आवश्यक है कि हम अपनी दृष्टि को भौतिकवाद से हटाकर अध्यात्मवाद की ओर मोड़ने का प्रयास करें और समन्वय के मार्ग को अपनावें। तभी ये समस्याएँ सुलझ सकेंगी। संक्षेप में यही कहना पर्याप्त होगा कि उक्त सभी आपत्तियों से बचने के लिए तथा सुखी, शान्त और सन्तुलित जीवन जीने के लिए विचार में अनेकान्त, भाषा में स्याद्वाद और व्यवहार में नयवाद या सापेक्षवाद को अपनाना श्रेयस्कर है। 000 288 :: जैनदर्शन में नयवाद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300