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पुद्गल पर्याय- पुद्गल द्रव्य की अनन्त पर्याय हैं, उनमें दश पर्याय या अवस्थाएँ मुख्य हैं— शब्द, बन्ध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान (आकार), भेद (खण्ड), अन्धकार, छाया, आतप और उद्योत
जैनदर्शन में पुद्गल द्रव्य की शब्द, बन्ध आदि उक्त दश अवस्थाएँ मानी गयी हैं, जिन्हें प्राचीन काल के अन्य दार्शनिक पुद्गल रूप में स्वीकार नहीं करते थे किन्तु आज आधुनिक विज्ञान ने उन्हें पुद्गल रूप में स्वीकार कर लिया है। जैनशास्त्रों में इनका विस्तृत विवेचन मिलता है। यहाँ संक्षेप रूप से उनका विवेचन किया जाता है
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1. शब्द - पुद्गल के अणु और स्कन्ध भेदों की अवान्तर जातियाँ 23 हैं। उनमें एक जाति शब्द या भाषा वर्गणा है। ये भाषा वर्गणाएँ लोक में सर्वत्र व्याप्त हैं। जिस काय-वस्तु से ध्वनि निकलती है उस वस्तु में कम्पन होने के कारण इन पुद्गल वर्गणाओं में भी कम्पन होता है जिससे तरंगें उत्पन्न होती हैं । ये तरंगें ही उत्तरोत्तर पुद्गल वर्गणाओं में कम्पन पैदा करती हैं, जिससे शब्द एक स्थान से उद्भूत होकर दूसरे स्थान पर भी सुनाई पड़ता है।
विद्यमान अणुओं का ध्वनिरूप परिणाम शब्द है । वह शब्द स्कन्ध से उत्पन्न होता है, अनेक परमाणुओं के बन्ध विशेष को स्कन्ध कहते हैं, उन स्कन्धों के परस्पर में टकराने से शब्द की उत्पत्ति होती है । 4 वह शब्द अरूप या अभौतिक नहीं है; क्योंकि वह श्रोत्रेन्द्रिय का विषय है। जो कुछ भी इन्द्रियग्राह्य होता है, वह मूर्त-स्वरूप और पौद्गलिक होता है । अतः शब्द पौद्गलिक है। स्कन्धों के परस्पर संयोग, संघर्षण और विभाग से शब्द उत्पन्न होता है । जिह्वा और तालु आदि के संयोग से नाना प्रकार के भाषात्मक प्रायोगिक शब्द उत्पन्न होते हैं । शब्द के उत्पादक उपादान कारण तथा स्थूल निमित्त कारण दोनों ही पौद्गलिक हैं । शब्द केवल शक्ति नहीं किन्तु शक्तिमान पुद्गल स्कन्ध है, जो वायुस्कन्ध के द्वारा देशान्तर को जाता हुआ आस-पास के वातावरण को प्रभावित करता है, झनझनाता है और सुनने वाले के कर्णकुहर को प्राप्त होता हुआ कान के पर्दे को स्पर्श करके · सुनाई पड़ता है। शब्द मूर्तिक है इसलिए मूर्तिक कर्णेन्द्रिय द्वारा उसका ग्रहण होता है।
न्याय-वैशेषिक दर्शन शब्द को आकाश का गुण मानता है तो वेदान्त ब्रह्म का विवर्त और बौद्ध विज्ञान का परिणाम । किन्तु जैनदर्शन इसे पुद्गल द्रव्य की व्यंजन पर्याय मानता है। यदि शब्द आकाश का गुण होता तो मूर्तिक कर्णेन्द्रिय के
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नयवाद की पृष्ठभूमि :: 37
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