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होते हैं।
जिस प्रकार स्वरूपचतुष्टय” (स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल और स्वभाव) की अपेक्षा से वस्तु 'अस्तिरूप है और परचतुष्टय298 (पर-द्रव्य, पर-क्षेत्र, पर-काल और पर-भाव) की अपेक्षा से 'नास्ति रूप' है उसी प्रकार वस्तु उपर्युक्त 'अस्ति' और 'नास्ति' धर्मों का एक साथ कथन करने की वाणी की असमर्थता वश 'अवक्तव्य' (अवाच्य या अनिर्वचनीय) रूप भी कही गयी है; क्योंकि सत्त्व और असत्त्व, भाव और अभाव, विधि और प्रतिषेध तथा एक और अनेक रूप तत्त्व का एक समय में प्रतिपादन शब्दों की शक्ति के परे होने से 'कथंचित् अनिर्वचनीय' या 'अवक्तव्य' धर्म का सद्भाव स्वीकार करना पड़ता है। इस प्रकार मूल भंग तीन ही सिद्ध होते हैं। इन तीनों भंगों के संयोग से चार और भंगों या दृष्टियों का उदय होता है-(1) अस्ति-नास्ति, (2) अस्ति अवक्तव्य, (3) नास्ति अवक्तव्य, (4) अस्ति-नास्ति अवक्तव्य । इस तरह कुल-(1) स्यादस्ति, (2) स्यान्नास्ति, (3) स्याद् अवक्तव्य, (4) स्यादस्ति-नास्ति, (5) स्यादस्ति अवक्तव्य, (6) स्यान्नास्ति अवक्तव्य, (7) स्यादस्ति-नास्ति अवक्तव्य-ये सात ही भंग बनते हैं। इन सात भंगों को वस्तु-स्वरूप का ठीक-ठीक निर्णायक होने के कारण सप्तभंगी न्याय भी कहते हैं। ___ जिस प्रकार गणित शास्त्र के संचय-नियम के अनुसार 1, 2, 3, या 8, 9, 10 इन शुद्ध ,या मूल तीन संख्याओं की तीन द्विसंयोगी 8-9, 8-10, 9-10 और एक त्रिसंयोगी-8-9-10 इस तरह अपुनरुक्त संख्याएँ सात ही होती हैं, अधिक नहीं। जैसे
(1) 8 (2) 9 (3) 10 (4) 8-9 (5) 8-10
(6) 9-10 . . . (7) 8-9-10 और जिस प्रकार 'खटाई, मिश्री, मिर्च, इन तीन पदार्थों के तीन शुद्ध या असंयुक्त स्वाद, तीन द्विसंयोगी स्वाद खटाई-मिश्री, खटाई-मिर्च, मिश्री-मिर्च और एक त्रिसंयोगी स्वाद खटाई-मिश्री-मिर्च, इस तरह कुल सात ही स्वाद होते हैं, अधिक नहीं। जैसे. (1) खटाई
तत्त्वाधिगम के उपाय :: 175
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