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होता है, अर्थ व शब्द विषयक नहीं और उस कल्पनाजन्य प्रतिभास का विषय अर्थ व शब्द-दोनों से अधिक है; क्योंकि अर्थ व शब्द तो सीमित हैं और वह है असीमित। इसलिए ज्ञान सबसे बड़ी वस्तु है। अर्थ और शब्द में से अर्थ बडा है और शब्द छोटा; क्योंकि द्रव्य, गुण-पर्यायों में सूक्ष्म स्थूल रूप से तथा द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव रूप से रहने वाला अर्थ तो अनन्त है, परन्तु शब्द संख्यात मात्र से अधिक होना असम्भव है। दूसरी बात यह है कि शब्द केवल स्थूल अर्थ को विषय कर सकता है, सूक्ष्म को नहीं और जगत् में स्थूल की अपेक्षा सूक्ष्म अर्थ बहुत है। इसलिए शब्द का विषय अर्थ की अपेक्षा अत्यन्त अल्प है। इस प्रकार तीनों नयों के विषयों में महान् व लघुपना जान लेना चाहिए। ज्ञाननय का विषय महान् है, अर्थनय का उससे कम और शब्दनय का सबसे कम।
जिन नैगमादि सात नयों का विवेचन आगे किया जाने वाला है, उनमें से नैगमनय ज्ञाननय भी है और अर्थनय भी। संग्रह, व्यवहार और ऋजुसूत्र ये तीन नय अर्थनय ही हैं। शब्द, समभिरूढ और एवंभूत ये तीन शब्दनय ही हैं। इस प्रकार उन सातों में एक नैगमनय ज्ञाननय है, नैगम, संग्रह, व्यवहार और ऋजुसूत्र ये चार नय अर्थनय हैं और शब्द, समभिरूढ तथा एवंभूत-ये तीन नय शब्दनय हैं।
इन तीन नयों में ज्ञानाश्रित व्यवहारों का संकल्पमात्र ग्राही नैगमनय में समावेश होता है। आचार्य पूज्यपाद ने नैगमनय को संकल्पमात्रग्राही बताया है। तत्त्वार्थभाष्य में भी अनेक ग्राम्य व्यवहारों का तथा औपचारिक लोकव्यवहारों का स्थान इसी नैगमनय की विषयमर्यादा में निश्चित किया है।
आचार्य सिद्धसेन ने अभेदग्राही नैगम का संग्रहनय में तथा भेदग्राही नैगम का व्यवहार नय में अन्तर्भाव किया है। इससे ज्ञात होता है कि नैगम को संकल्प मात्र ग्राही न मानकर अर्थग्राही भी स्वीकार करते हैं। अकलंकदेव ने यद्यपि राजवार्तिक में आचार्य पूज्यपाद का अनुसरण करके नैगमनय को संकल्प मात्र ग्राही लिखा है फिर भी लघीयस्त्रय-कारिका 39 में उन्होंने नैगमनय को अर्थ के भेद का या अभेद का ग्रहण करने वाला बताया है। इसीलिए इन्होंने स्पष्ट रूप से नैगम आदि ऋजुसूत्र पर्यन्त चार नयों को अर्थनय माना है। अर्थाश्रित अभेद व्यवहार का संग्रह नय में अन्तर्भाव किया गया है। . इससे नीचे तथा एक परमाणु की वर्तमान कालीन एक अर्थ पर्याय से पहले होने वाले यावत् मध्यवर्ती भेदों को, जिनमें नैयायिक, वैशेषिकादि दर्शन हैं, व्यवहारनय में अन्तर्भूत किया गया है।
अर्थ की आखिरी देशकोटि परमाणु रूपता तथा अन्तिम कालकोटि में
नयों का सैद्धान्तिक दृष्टिकोण तथा उनके भेद-प्रभेद :: 219
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