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आकाश के एक-एक प्रदेश में अनन्त ठहर जाते हैं। इनकी यह अवगाहन शक्ति व्याघात रहित है इसलिए आकाश के एक प्रदेश में भी अनन्तानन्त परमाणुओं का अवस्थान निर्बाध रूप से होता है। इस प्रकार यह परमाणुओं की सूक्ष्म परिणमन और अवगाहन शक्ति का वैचित्र्य है।
परमाणुओं का समासीकरण-जैनदर्शन बताता है कि थोड़े से परमाणु एक विस्तृत आकाश खण्ड को घेर लेते हैं और कभी-कभी वे परमाणु घनीभूत होकर बहुत छोटे से आकाश देश में समा जाते हैं। इस समासीकरण और व्ययातीकरण का मुख्य कारण यह है कि एक परमाणु अपने ही सदृश एक आकाश प्रदेश में पूरा समा जाता है और अपनी सूक्ष्म परिणामावगाहनशक्ति से उसी आकाश प्रदेश में अनन्तानन्त परमाणु निर्विरोध एक साथ ठहर जाते हैं।
इस प्रकार इस विवेचन से परमाणु के सम्बन्ध में अनेक बातें ज्ञात होती हैं। परमाणु विषयक जैनदर्शन की यह मान्यता भारतीय-दर्शन में अपना विशेष स्थान रखती है।
स्कन्ध-दो या दो से अधिक तीन, चार, छः, संख्यात, असंख्यात तथा अनन्त परमाणुओं के पिण्ड को स्कन्ध कहते हैं। स्कन्ध अनेक पुद्गल-परमाणुओं का एक समूह है। परमाणु पुद्गल का शुद्धरूप या स्वाभाविक पर्याय है। और स्कन्ध विभाव पर्याय है; क्योंकि स्कन्ध अनेक परमाणुओं का बन्ध विशेष है। दो या दो से अधिक परमाणुओं के बन्ध से जो द्रव्य तैयार होता है उसे स्कन्ध कहते हैं। दो परमाणुओं के मेल से व्यणुक बनता है, तीन परमाणुओं के मेल से त्र्यणुक, इसी तरह संख्यात, असंख्यात और अनन्त परमाणुओं के मेल से संख्यातप्रदेशी, असंख्यातप्रदेशी और अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तैयार होते हैं। धूप में जो कण उड़ते हुए दृष्टिगोचर होते हैं वे सभी स्कन्ध ही हैं।
उक्त कथन में इतनी विशेषता है कि व्यणुक तो परमाणुओं के संश्लेष से ही बनता है किन्तु त्र्यणुक आदि स्कन्ध परमाणुओं के संश्लेष से भी बनते हैं तथा विविध स्कन्धों के संश्लेष से भी। इसलिए अन्त्य स्कन्ध के अतिरिक्त शेष सभी 'स्कन्ध परस्पर कार्यरूप भी हैं और कारणरूप भी। जिन स्कन्धों से बनते हैं उनके कार्य हैं और जिन्हें बनाते हैं उनके कारण भी है।
स्कन्ध के भेद-यद्यपि स्कन्ध के अनन्त भेद हैं तथापि संक्षेप से तीन भेद हैं-1. स्कन्ध, 2. स्कन्ध देश और 3. स्कन्ध प्रदेश। ___(1) स्कन्ध-मूर्त द्रव्यों की एक इकाई स्कन्ध है। दूसरे शब्दों में दो से लेकर
नयवाद की पृष्ठभूमि :: 35
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