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बकरी, गाय, भैंस और ऊँटनी के दूध में और घी में उत्तरोत्तर अधिक रूप से स्नेह गुण (चिक्कणता) होता है तथा रज, बालू आदि में अधिक-अधिक रूक्षता पाई जाती है। इसी प्रकार परमाणुओं में भी स्निग्धता और रूक्षता की अधिकता होती है । अतः स्निग्ध गुणवाले परमाणुओं का भी बन्ध होता है, रूक्षगुण वाले परमाणुओं का भी बन्ध होता है। अर्थात् यह बन्ध स्निग्ध गुणवाले परमाणु व स्कन्ध का स्निग्ध गुण वाले परमाणु व स्कन्ध के साथ, रूक्ष का रूक्ष के साथ और स्निग्ध का रूक्ष के साथ । इस प्रकार समान जातीय तथा असमान जातीय दोनों का भी होता है, किन्तु जघन्य गुण वाले परमाणुओं का बन्ध नहीं होता। जिनमें स्निग्धता और रूक्षता का एक अविभागी अंश हो वे जघन्य गुण वाले परमाणु कहलाते हैं, इनका बन्ध नहीं होता" और न ही गुणों की समानता होने पर समान जाति वाले परमाणु के साथ बन्ध होता है। जैसे- दो गुण वाले स्निग्ध परमाणु का दूसरे दो गुण वाले स्निग्ध परमाणु के साथ बन्ध नहीं होता; क्योंकि इस प्रकार के गुण वाले परमाणु यद्यपि परस्पर में मिल सकते हैं, किन्तु स्कन्ध को उत्पन्न नहीं कर सकते । इस कथन से यह प्रकट होता है कि गुणों की विषमता में समान जाति वाले अथवा भिन्न जाति वाले पुद्गल परमाणुओं का बन्ध हो जाता है। अतः दो अधिक गुणवाले परमाणुओं का ही परस्पर में बन्ध हो सकता है; क्योंकि अधिक गुणवाला परमाणु अपने से दो कम गुणवाले परमाणु से मिलकर एक तीसरी ही अवस्था धारण करता है, इसी का नाम बन्ध है। यदि दो से अधिक या दो से कम गुणवालों का भी बन्ध मान लिया जाए तो अधिक विषमता हो जाने के कारण अधिक गुणवाला कम गुणवालों को तो अपने में मिला लेगा, किन्तु कम गुणवाला अधिक गुणवाले पर अपना उतना प्रभाव नहीं डाल सकेगा जितना रासायनिक सम्मिश्रण के लिए आवश्यक है । अतः दो अधिक वालों का ही बन्ध होता है और ऐसे ही बन्ध से स्कन्धों की उत्पत्ति होती है ।"
एक स्निग्ध परमाणु का दूसरे दो गुण अधिक स्निग्ध परमाणुओं के साथ बन्ध होता है, एक रूक्ष परमाणु का दूसरे दो गुण अधिक रूक्ष परमाणु के साथ बन्ध होता है और एक स्निग्ध परमाणु का दूसरे दो गुण अधिक रूक्ष परमाणु के साथ भी बन्ध होता है। इस प्रकार समान जातीय और असमान जातीय दोनों प्रकार के परमाणुओं का बन्ध होता है; किन्तु जघन्य गुणवालों का बन्ध नहीं होता है। जैसे- एक गुण वाले का तीन गुण वाले परमाणु के साथ बन्ध नहीं होता। शेष स्निग्ध या रूक्ष दोनों परमाणुओं का समधारा या विषमधारा में दो गुण अधिक होने पर बन्ध होता है। दो, चार, छ:, आठ, दस इत्यादि जहाँ पर दो के ऊपर दो-दो अशों की अधिकता हो वह समधारा है और तीन, पाँच, सात, नौ, ग्यारह इत्यादि जहाँ पर तीन के ऊपर दो-दो अंशों की वृद्धि हो वह विषम धारा है। इन दोनों धाराओं में जघन्य गुण को
40 :: जैनदर्शन में नयवाद
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