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दोनों द्रव्य पाये जाते हैं, वह लोकाकाश है और शेष अलोकाकाश।
पुद्गलद्रव्य का अवगाह लोकाकाश के एक प्रदेश को आदि लेकर संख्यात, असंख्यात प्रदेशों में यथायोग्य होता है।33 आकाश के एक प्रदेश में एक परमाणु से लेकर असंख्यात और अनन्त परमाणुओं के स्कन्ध का अवगाह हो सकता है। इसी प्रकार आकाश के दो, तीन आदि प्रदेशों में भी पुद्गल द्रव्य का अवगाह होता है।
यहाँ यह प्रश्न उपस्थित होता है कि धर्म, अधर्म द्रव्य तो अमूर्तिक हैं इसलिए इनके अवगाह में कोई विरोध नहीं है, लेकिन अनन्त प्रदेश वाले मूर्तिक पुद्गल स्कन्ध का असंख्यात प्रदेशी लोकाकाश में अवगाह कैसे हो सकता है?
इसका समाधान यह है कि सूक्ष्म परिणमन और अवगाहन शक्ति होने से आकाश के एक प्रदेश में भी अनन्त परमाणु वाला पुद्गल स्कन्ध रह सकता है। जैसे-एक कोठे में अनेक दीपकों का प्रकाश एक साथ रहता है। इस विषय में आगम प्रमाण भी है-सूक्ष्म-बादर और नाना प्रकार के अनन्तानन्त पुद्गल स्कन्धों से यह लोक ठसाठस भरा है। इस विषय को और अधिक स्पष्ट करने के लिए रुई का दृष्टान्त पर्याप्त है-जिस प्रकार फैली हुई रुई अधिक क्षेत्र को घेरती है, जबकि उसकी गाँठ बाँधने पर अल्प क्षेत्र में आ जाती है।
जीवों का अवगाह लोकाकाश के असंख्यातवें भाग से लेकर समस्त लोकाकाश में है।35 लोकाकाश के असंख्यात भागों में से एक, दो, तीन आदि भागों में एक जीव रहता है और लोक-पूरण समुद्घात के समय वही जीव समस्त लोकाकाश में व्याप्त हो जाता है। समुद्घात का मतलब होता है मूल शरीर को न छोड़कर तैजसकार्मण रूप उत्तर देह के साथ-साथ जीव प्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना।।36
यहाँ यह प्रश्न हो सकता है कि यदि एक जीवद्रव्य असंख्यात प्रदेशी है तब वह लोक के असंख्यातवें भाग में कैसे रह सकता है ? इसका समाधान यह है कि दीपक के प्रकाश की तरह प्रदेशों के संकोच और विस्तार के द्वारा जीव लोकाकाश के असंख्यातवें आदि भागों में रहता है। जिस तरह दीपक को एक बड़े मकान में या खुले मैदान में रख देने से उसका प्रकाश समस्त मकान या पूरे मैदान में फैल जाता है और उसी दीपक को एक छोटे से घड़े में रख देने से उसका प्रकाश उसी में संकुचित होकर रह जाता है। उसी तरह जीव भी अनादि कार्माण शरीर के कारण जितना छोटा या बड़ा शरीर प्राप्त करता है, उसमें अपने आत्म-प्रदेशों के संकोच और विस्तार स्वभाव के कारण रह जाता है। लघु या सूक्ष्म शरीर में आत्म-प्रदेशों
नयवाद की पृष्ठभूमि :: 59
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