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(2) वितत–ताँतवाले सितार, तमूरा, वीणा, सारंगी आदि वाद्यों का शब्द वितत है।
(3) घन-झांज, घंटा आदि का शब्द। (4) सुषिर-फूंक से बजने वाले शंख, वांसुरी आदि का शब्द।
शब्द के उक्त सभी भेदों को एक चार्ट द्वारा एकसाथ प्रदर्शित किया जा सकता
है
शब्द
भाषात्मक
अभाषात्मक
अक्षरात्मक
अनक्षरात्मक
प्रायोगिक
वैससिक
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तत वितत घन सुषिर
___ 2. बन्ध–अनेक पदार्थों में एकपने का ज्ञान कराने वाले सम्बन्ध विशेष को बन्ध कहते हैं। केवल दो वस्तुओं का परस्पर में मिल जाना मात्र ही बन्ध नहीं है; किन्तु बन्ध उस सम्बन्ध विशेष को कहते हैं, जिसमें दो चीजें अपनी असली हालत को छोड़कर एक तीसरी हालत में हो जाती हैं। जैसे-आक्सीजन और हाईड्रोजन, ये दोनों गैसें जब परस्पर में मिलती हैं तो पानी का रूप हो जाती हैं। कपूर, पिपरमैंट
और सत अजवायन परस्पर में मिलकर एक द्रव औषधि का रूप धारण कर लेते हैं, यही बन्ध है। केवल संयोग मात्र ही बन्ध नहीं है। जैसे-एक घड़े में बहुत से चने भरे हैं, उन चनों में परस्पर में संयोग है, बन्ध नहीं, क्योंकि उनमें परस्पर एकीभाव नहीं है, भिन्न-भिन्न है; किन्तु एक चने में जो अनन्त परमाणुओं का समुदाय है, वह बन्ध रूप है; क्योंकि उन परमाणुओं में एकीभाव है। बन्ध में रासायनिक सम्मिश्रण आवश्यक है, उसके बिना बन्ध नहीं हो सकता। ... जैनदर्शन में बन्ध के स्वरूप का विश्लेषण बड़ी सूक्ष्मता से किया गया है। उसके अनुसार स्निग्ध और रूक्ष गुण के निमित्त से ही परमाणुओं का बन्ध होता है। परमाणुओं में अन्य भी अनेक गुण होते हैं, किन्तु बन्ध कराने के कारण केवल दो ही गुण हैं-स्निग्धता (चिक्कणता) और रूक्षता (रूखापन)। यह स्निग्धता और रूक्षता पुद्गल परमाणुओं में हीनाधिक रूप में पायी जाती है। जैसे-जल तथा
नयवाद की पृष्ठभूमि :: 39
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