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हैं-अन्त्य और आपेक्षिक। परमाणुओं में अन्त्य सूक्ष्मता पाई जाती है और व्यणुकादि में आपेक्षिक सूक्ष्मता रहती है। आपेक्षिक सूक्ष्मता संघात रूप स्कन्धों के परिणमन की अपेक्षा से हुआ करती है, जैसे- नारियल, आम, बेर आदि में आपेक्षिक सूक्ष्मपना है। नारियल की अपेक्षा आम में सूक्ष्मता और आम की अपेक्षा बेर में सूक्ष्मता पायी जाती है। इस प्रकार यह सूक्ष्मता अनेक भेद रूप है।
4. स्थूलता-यह भी पुद्गल की पर्याय है। स्थूलता का अर्थ मोटापन या गुरुता है। इसके भी दो भेद हैं- अन्त्य और आपेक्षिक। आपेक्षिक स्थूलता संघात रूप पुद्गल स्कन्धों के परिणमन विशेष की अपेक्षा से हुआ करती है। अन्त्य स्थूलता सम्पूर्ण लोक में व्याप्त होकर रहने वाले महास्कन्ध में रहा करती है। और आपेक्षिक स्थूलता अपेक्षाकृत होती है। जैसे-बदरी फल की अपेक्षा आँवले में स्थूलता पाई जाती है और आँवले की अपेक्षा बिल्व फल में। इस प्रकार यह स्थूलता भी अनेक भेदरूप है। सूक्ष्मत्व के उदाहरण में उत्तरोत्तर सूक्ष्मता और स्थूलत्व के उदाहरण में उत्तरोत्तर स्थूलता पाई जाती है। ये दोनों ही पौद्गलिक हैं।
___5. संस्थान”–संस्थान का अर्थ आकृति या आकार है। यह दो प्रकार का है-(1) इत्थंलक्षण और (2) अनित्थंलक्षण। जिस आकार का यह इस तरह का है' इस प्रकार से निर्देश किया जा सके वह इत्थंलक्षण संस्थान है। जैसे-गोल, त्रिकोण, चतुष्कोण, दीर्घ, वलयाकार आदि। जिस आकार से विषय में कुछ कहा न जा सके वह अनित्थंलक्षण संस्थान है। जैसे-मेघ, इन्द्रधनुष आदि के आकार के विषय में कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
6. भेद – एकत्व अर्थात् स्कन्ध रूप में परिणत पुद्गल पिण्ड का विश्लेष या विभाग होना भेद है। इसके उत्कर, चूर्ण, खण्ड, चूर्णिका, प्रतर, अणुचटन ये छह भेद हैं
__ (1) उत्कर-करोंत, कुल्हाड़ी आदि से लकड़ी आदि के चीरने पर जो बुरादा निकलता है वह उत्कर है।
(2) चूर्ण-जो तथा गेहूँ आदि का आटा (3) खण्ड-घट आदि का टुकड़ों-टुकड़ों में हो जाना। (4) चूर्णिका-उड़द तथा मूंग आदि की चुनी-चूरी आदि।
(5) प्रतर-मेघ पटलों का विघटन तथा अभ्रक, मिट्टी आदि की तहें निकलना।
(6) अणुचटन-गर्म लोहे आदि को घन से कूटने पर आग के कणों का निकलना अथवा खान में से स्फुलिंगों का निकलना।
42 :: जैनदर्शन में नयवाद
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