________________
7. तम-प्रकाश के विरोधी और दृष्टि का प्रतिबन्ध करने वाले पुद्गल परिणाम को तम या अन्धकार कहते हैं। तम अन्धकार का ही दूसरा नाम है। यह देखने में रुकावट डालने वाला प्रकाश का विरोधी या प्रतिपक्षी एक परिणाम विशेष है। इसमें वस्तुएँ दिखाई नहीं देतीं। सूर्य, चन्द्र, बिजली, दीपक आदि के अभाव में जो पुद्गल स्कन्ध काले अन्धकार के रूप में परिवर्तित होते हैं वह तम या अन्धकार है। प्रकाश और अन्धकार दोनों मूर्तिक हैं। इनका अवरोध हो सकता है। प्रकाश पथ में सघन पुद्गलों के आ जाने से अन्धकार की उत्पत्ति होती है अतएव ये दोनों पौद्गलिक हैं।
न्याय-वैशेषिक दर्शन तम को सर्वथा अभाव रूप मानता है, परन्तु नेत्रेन्द्रिय से उसका ज्ञान होता है, इसलिए उसे सर्वथा अभाव रूप नहीं माना जा सकता।
8. छाया- किसी भी वस्तु में अन्य वस्तु की आकृति के अंकित हो जाने को छाया कहते हैं। यह छाया प्रकाश और आवरण के निमित्त से होती है। जब प्रकाश को आवृत करने वाले शरीरादिक के निमित्त मिलते हैं तब छाया पड़ती है। सूर्य, दीपक, बिजली आदि के कारण आस-पास के पुद्गल स्कन्ध भासुर रूप धारण कर प्रकाश स्कन्ध बन जाते हैं, जब कोई स्थूल स्कन्ध इस प्रकाश स्कन्ध की जितनी जगह को अवरुद्ध रखता है उतने स्थान के स्कन्ध काला रूप धारण कर लेते हैं, यही छाया है।
9, 10: आतप, उद्योत-उष्ण प्रभा वाले प्रकाश को आतप और शीत प्रभा वाले तथा आह्लादक प्रकाश को उद्योत कहते हैं। सूर्य, अग्नि आदि का उष्ण प्रकाश आतप कहलाता है और चन्द्र, मणि, खद्योत (जुगनू) आदि का ठण्डा प्रकाश उद्योत कहलाता है। वैसे अग्नि से इन दोनों में अन्तर है। अग्नि स्वयं उष्ण होती है और उसकी प्रभा भी उष्ण होती है; किन्तु आतप और उद्योत के विषय में यह बात नहीं है। आतप मूल में ठण्डा होता है, केवल उसकी प्रभा उष्ण होती है और उद्योत मूल में भी ठण्डा होता है और उसकी प्रभा भी ठण्डी होती है।
उक्त तम, छाया, आतप और उद्योत पुद्गल द्रव्य के परिणमन विशेष के द्वारा ही निष्पन्न हुआ करते हैं, अतएव ये भी उसी के धर्म हैं। न भिन्न द्रव्य हैं और न भिन्म द्रव्य के परिणाम हैं। शब्द, बन्ध आदि के समान ये भी पुद्गल ही हैं; क्योंकि उक्त स्पर्श आदि सभी गुण पुद्गलों में ही रहा करते हैं और इसलिए पुद्गलों को रूप, रस, गन्ध, स्पर्शवान् कहा गया है। रूपादिक पुद्गल के लक्षण हैं। अतएव शब्द, बन्ध आदि को भी पुद्गल का ही परिणाम कहा गया है; किन्तु जैसा ऊपर कहा जा चुका है न्याय-वैशेषिक शब्द को आकाश का गुण, वेदान्ती ब्रह्म का विवर्त और कुछ लोग विज्ञान का परिणाम मानते है; किन्तु यह मान्यता युक्ति,
नयवाद की पृष्ठभूमि :: 43
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org