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नहीं माना जा सकता।
दूसरी बात यह है कि पूर्व, पश्चिम आदि व्यवहार जो दिग्द्रव्य-दिशा का कार्य वैशेषिक आदि दर्शनों द्वारा माना जाता है, उसकी उपपत्ति आकाश के द्वारा . हो सकने के कारण दिग्द्रव्य को आकाश से अलग मानने की जरूरत नहीं, पर धर्म, अधर्म द्रव्यों का कार्य आकाश से सिद्ध नहीं हो सकता, क्योंकि आकाश को गति और स्थिति का नियामक मानने से वह अनन्त और अखण्ड होने के कारण जड़ तथा चेतन द्रव्यों को अपने में सर्वत्र गति व स्थिति करने से रोक नहीं सकता और ऐसा होने से नियत दृश्यादृश्य विश्व के संस्थान की अनुपपत्ति बनी ही रहेगी। इसीलिए धर्म, अधर्मद्रव्यों को आकाश से अलग स्वतन्त्र द्रव्य मानना न्याय-संगत है। जब जड़ और चेतन गतिशील हैं तब मर्यादित आकाश क्षेत्र में उनकी गति और स्थिति नियामक के बिना ही अपने स्वभाव से नहीं मानी जा सकती, इसलिए धर्म, अधर्मद्रव्यों का अस्तित्व युक्ति-सिद्ध है। 4. आकाशद्रव्य जो जीवादि द्रव्यों को अवकाश (स्थान) प्रदान करता है वह आकाश द्रव्य है। 'आकाश' शब्द की व्युत्पत्तियाँ भी इस ही परिभाषा के आधार पर की गयी हैं। जिसमें समस्त द्रव्य अवकाश को प्राप्त हों अथवा जो स्वयं अवकाश रूप हो अथवा जो सब द्रव्यों को अवकाश (स्थान) देता है अथवा जिसमें जीवादि द्रव्य अपनीअपनी पर्यायों से अभिन्न रूप से आकाशित या प्रकाशित होते हों। अथवा जो चारों ओर से सर्वत्र लोक और अलोक में रहता है, वह आकाश है।" यह आकाश सर्वव्यापी, अखण्ड, अमूर्तिक, अदृश्य, अरूपी, निष्क्रिय और एक है। तात्पर्य यह है कि आकाश वह अमूर्त द्रव्य है जिसमें सभी द्रव्य स्थान पाते हैं, ये सभी आकाश में ही स्थित हैं। ये एक दूसरे में व्याप्त हैं। अर्थात् परस्पर एक दूसरे में समावेश करने वाले हैं।
आकाश द्रव्य का कार्य-इस द्रव्य का मुख्य कार्य सब पदार्थों को स्थान देना है। अवकाशदान इसका असाधारण गुण है। जीव व समस्त भौतिक पदार्थ इस आकाश द्रव्य में अवगाहना (स्थान) पाये हुए हैं। अवगाह करने वाले या स्थान पाने वाले जीवादि द्रव्य हैं, इनको अवगाह (स्थान) देना आकाश का कार्य है। जीवादि द्रव्य कहीं-न-कहीं स्थित हैं अर्थात् आधेय बनना या अवकाशलाभ करना इनका कार्य है, पर अपने में अवकाश देना यह आकाश का कार्य है। इसी से 'अवगाह प्रदान' यह आकाश का लक्षण माना गया है। यह आकाश जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और कालद्रव्यों के अवगाहन में हेतुपने को प्राप्त होता है। अर्थात् उन्हें
48 :: जैनदर्शन में नयवाद
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