Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah

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Page 14
________________ सन्संगतिरूपा द्वितीयचंदनपूजा ॥२॥ दुहा. सत्संगति ए दीप छे, कुबुद्धि छे अंधार; सत्संगतिथी पामीये, विरवि विवेक विचार; ॥१॥ सत्संगनिसम सृष्टिमां, एक नही उपचार; पारससंग लोहन, सोनुं बने सुखकार; ॥२॥ सत्संगतिथी सुधर्या, जगमा आत्म अनंत; सत्संगति दे सहजमां, भवतारण भगवंत. ॥३॥ सत्संगति नित्ये करो, करवा भवानिस्तार; क्षणिक सुख लय पामशे, उपजे शांति अपार. ॥४॥ अगरचंदनना संगनो, महद जुओ महिमाय; अन्यक्ष निजसम करे, जीवनो शिव बनी जायः ॥५॥ ढाल-आवो आवो जशोदाना कंत-ए राग. नथुभाईनो निर्मल भाव, जाम्यो सारोरे; जेणे कराव्यो सद्गुरु संग, सुख करनारोरे; ॥१॥ सुखसागर श्री मुनिराज, जपतप भरीयारे; ए तो श्रावक धर्मना सार, कर्मना दरियारे. ॥२॥ बेसी एमनी पास अनेक, शास्त्र सांभालियारे माटे निर्मल एमनां चित्त, भक्तिमा भलियांरे. ॥३॥ एवा संगतना सुप्रताप, प्रीति बंधाणीरे; जैन धर्म विषे विश्वास, वस्तु बरताणीरे. ॥४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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