Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah
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..छे साधु. ॥२॥
ढाल बनजारा-राग. छे साधु पद सुखकारी, मनमां समजो नरनारी; ए टेक. तारामां सूरज जेवो, साधुभव समजो एवो; ज्यां प्रभुरस पूरण लेवो.
छे साधु. ॥१॥ छठा गुण स्थानक जावा, वलि पूरण पावन थावा;
छे अनुभव ल्हावा. जेवो अणुथी मोटो मेरु, मोटुं कंकरथी जेवू देरु, एवं जीवन मुनिजनके.
छे साधु. ॥३॥ ज्यां अनुपम सुख प्रसरे छे, विपदा जगनी विसरे छे;
मुनि हरदम प्रभु उच्चरे छे. छे साधु ॥४॥ मुखकारक जगमां साधु, जेणे आत्मतणुं सुख स्वायु, मन विश्वपतिमां वाध्यु.
छे साधु. ॥५॥ लीधी दीक्षा शिव सुखदाई, गण्यां जूठां भाइ भोजाई; स्वीकारी-भली साधुताई.
छे साधु ॥६॥ बुद्धिसागर धार्यु नाम, थया पोते पूरणकाम; ब्रह्मचर्य धर्यु सुखधाम.
छे साधु. ॥७॥ ओगणीसें सत्तावन वर्षे, मागशर सुदी सातम दिवसे; लीधी दीक्षा अतिशय हर्षे. छे श्रावक. ॥८॥ मुज मन मन्दिरमा राजो, जय जय गुरुजीनी थानो; कीर्ति जगमां प्रसराजो.
छे साधु. ॥९॥ भुखसागर गुरु शिर कीधा, जैन धर्मना ल्हावा लीधा; पछी अजित प्रभु रस पीधा. छे साधु. ॥१०॥
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