Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah
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६७
गुरुविना बीजी छे गति नहिं, गुरु विना अहीं छे मति नहिं; गुरुजी ! व्हालथी आप व्यापता, परिहरो हवे सर्व आपदा॥२॥ पतित शिष्यनां कष्ट कापजो, उर विषे रुडां ज्ञान आपजो. मुजशिरे सदा छत्र छाजता, गुरु ! विदारजो सर्व आपदा; ॥३॥ तिमिरता हती अज्ञता तणी, परिहरी हमे हे शिरोमणिः करणी धर्मनी आपता हता, गुरुविदारजो सर्व आपदा ॥४॥ जगत्लोकमां आत्मभावना, इतर कोण ये ! आपना विना: शरण शिष्यनी लाजराखता, गुरुविदारजो सर्व आपदा.॥२॥ इतर तीर्थतो पाप कापशे, पण गुरु विना मोक्ष क्यां थशे; अमतणी तमो माघी छो मता, गुरु विदारजो सर्व आपदा.॥६॥ रझलतो हतो विश्व रानमां, समज आपता धर्मज्ञानमां, मम शिरे रहो ना विसारता,गुरु ! विदारजो सर्व आपदा.॥७॥ नमन आपना पायमां हजो, भ्रमणता हवे ना बीजी थजो; अजित अधिनी एवी प्रार्थना,शरण राखजो हे दयाधना.॥९॥
श्रीसद्गुरुना चरण
ललित छंद. ललित छंदमां विनती करुं, ललित काल छे तोय हूं डरु. गुरु विना हवे केम गोठशे ? गुरु विना हवे ग्लानि शे जशे । ममत माहरी छोडवी दीधी, ममत माहरी धर्ममां कीधी; इतर सौख्यनी प्राप्तिओ थशे, गुरु विना हवे केम गोठशे? २
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