Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah

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Page 84
________________ ७३ प्रगूढभावनी तमे अगूढता करी, प्रमूढलोकनी घणीज मूढता हरी; अगाधभावमा अगाधबुद्धि स्पर्शति, स्वीकारजो सदा अमारी आ नमस्कृति. ६ कवितणा प्रसंगमां कवित्व दर्शतुं, हरेक सौम्य वातमांही है९ हर्षतुं; न जाणुं आपनी गुरो ! कइ हती गति, स्वीकारजो सदा अमारी आ नमस्कृति. ॥७॥ मधुर ज्ञाननां तमे उघाडी वारणां: उद्धार लोकनो कर्यो उतारुं वारणां; अजित शिष्यनी पदाब्जमांही विनति, स्वीकारजो सदा अमारी आ नमस्कृति. ॥८॥ मस्तफकीरी. पूनमचांदनी खीली पूरी अहीरे-ए राग. अति अलमस्तफकीरी बुद्धिसागर महाराजनीरे, जेनुं वर्णन करतां वाणी विरमी जाय. अति-ए टेक. साखी-शांतस्वरूप सोह्यामj, शांतस्वरूप सत्कर्म: __ शांति भरेली वाणीथी, पावन पाल्या धर्म. निर्मल एक अगोचर अलख निरंजन ध्यानमार; अवधूत एवी दशानी वृत्ति केम विसराय. अति० ॥३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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