Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah

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Page 85
________________ ७४ साखी-आत्माऽहं रटना सदा, जेनुं साचुं सूत्र; विश्व सकल मम आतमा ए पुत्रि ए पुत्र. म्हारुं त्हारुं एवी गणना अज्ञानी तणीरे । जेने वसुधा एक कुटंब सदा समजाय. अति० ॥२॥ साखी-अगमपंथ जेनो घणो, अगम अगोचरदेव: अगमभावना आत्मनी, अगमसुखावह सेव. जेनी अगमदशा आ जगमां सज्जन ___ पावक ज्वाला जेवी जेनी प्रेमप्रभाय. अति० ॥३॥ साखी-मुखने नव संभारता, दुःख पण तेवी रीत; ___सहजानंद स्वभावमां, पूरी जेनी प्रीत. जेनो राज रंकपर सरखो भाव सुहावतोरे, वृत्ति एक अखंडित जिनवरमां देखाय. अति० ॥४॥ साखी-अज्ञानी जाणे नहिं, भेदु जाणे भेद; __अखेददेशनी वातने, शुं ? समजेज सखेद. गुरुवर समदर्शी जग सदा शीयलसंतोषनारे; __उत्तम अनुभव महिमा वदतां केम वदाय ? अति० ॥५॥ साखी-देशविदेशे नामना, जाणे संतो सर्व गुणनिधि दुर्गुण परिहर्या, मोह नहिं नहिं गर्व. वासी आनन्दघन यश विजयदेवना देशनारे; महिमा गुरुनो जाणी अजितमूरि नित्यगाय. अति० ॥६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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