Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah

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Page 86
________________ ७५ २८ श्री गुरुदेवने. गजल सोहिनी. उद्यानमां गुलाबनी, कोमलकलिका जोड़ छे; मृदु कुन्द सौम्य शिरीषने, मधुमालिका पण जोइ छे. उद्यान० ॥ १ ॥ कोमलपणानी रसभरी, यौवनदशा निरखी अति; पण आपना त्यां हृदयनी, मृदुभावना देखी नथी. उ० ॥२॥ जन पतितपावनी बोलता. ते जोइ छे भागीरथी; मोहनतणी यमुना तथा, अतिरम्य जोइ सरस्वती. उ० ॥३॥ तापी तथा आ नर्मदाने जोइ छे साबरमती: पण आपना शुभभावनी, रसवाहिनी देखी नथी. उ० ॥४॥ चलकाट करती चन्द्रिका, आकाशमां देखी घणी: प्रातःसमय पूर्वा विषे, किरणावली देखी घणी. उ० ॥५॥ विद्युत्तणा चमकारनी, म्हें देखी छे ज्योति अति: पण आपना त्यां ज्ञाननी, ज्योत्स्ना कदी देखी नथी. उद्यान० ||६|| सिन्धुतणीय अगाधता, आकाशनी उंडाणता; हिमगिरितणी उंचाणता, जलबिन्दुओनी प्रमाणता. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat उद्यान • ॥७॥ www.umaragyanbhandar.com

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