Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah

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Page 87
________________ ७६ ए सर्व म्हें देख्यां छतां, गुरु आपना सरखां नथी; चैतन्यसम जडवस्तु, प्रौढत्व म्हें देख्यां नथी. उ० ॥८॥ आकाशना तारातणी, गणना कदीक बनी शके; वर्षादना जलविन्दुनी, गणना कदापि थइ शके; उ० ॥९॥ पण गुरु तणा गुणनी कदी, गणना सुणी देखी नथी; गुरुदेवसम म्हें दिव्यता, जन अन्यमां देखी नथी. उ० ॥१०॥ सिंहे करेली गर्जना, गजयूथने भय आपती; ने मूर्यनी ज्योति तिमिरना, पुंजनेज हठावती. उ०॥११॥ एवी गुरुनी गर्जनाओ, पाप ताप प्रजालती; गुरु गर्जना सम गर्जना, बीजे महद् देखी नथी.उ० ॥१२॥ केवल दैव ? गजलसोहिनी. मम जन्मनी भूमि जूदी, ने अन्य पृथ्वी आपनी: मम मध्यता गुजरातनी, उत्तर हती गुरु आपनी. मम० |१॥ मम जन्मनी जाति जूदी, वली आपनी जाति दी: आचार पण जूदा अने, वृत्ति हती तेमज जूदो. मम० ॥२॥ ना जाणतो गुरु कोण छो? ना जाणता हुं कोण छु; त्यां जाण सर्वबनी गइ, छो कोण गुरु हुं कोण छं. मम०॥३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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