Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah
View full book text
________________
وقا
हुं अन्य पंथे परवर्योने, आप पण बीजे गया; पण पूर्वना परिवल वडे, संबंधी थइ भेगा थया. मम ।।४।। म्हारी अने गुरु आपनी, थइ भूमिकामां एकता; म्हारी अने गुरु आपनी, थइ जातिमाही एकता. मम० ॥५॥ उत्तर अने वळी मध्यनी, आजे बनी गइ एकता: आचार वृत्ति विचारमां, गुरु आज थइ गइ एकता. मम०॥६॥ आ दैवनी कृति एकतानी, भिन्नता केमज बनेः अद्वैत-मांहि एकतानी, द्वैतता क्याथी बने. मम०७॥ जे नगरमा मूतो हतो, त्यां मृत्यु घंटा गाजती: घनश्याम मूना आश्रमे, शय्या अमे कीधी हती. ममः॥८॥ त्यां एकदम आवी तमे, आज्ञा सुखद आपी दीधी: जाग्रत मधुर आवी अने, निद्रा दुःखावह दूर कोयो. मम०॥९॥ म्हारा सुना मंदिर विषे, भरपूर वस्ती आपनी; म्हारा मृदुल मंदिर विषे, मृदुभक्ति शस्ती आपनी. मम०॥१०॥ म्हारा सुभग आश्रम विषे, शुभमूर्ति हसतो आपनी; विसराय ना ने जायना, रसता हती ते आपनी. मम०॥११॥ आ दैवकृत संयोगनो, उपयोग पण पूरण थयो; घनरात्रि आज हठावी भासुर, उदय पण पूरण थयो.
मम० ॥१२॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122