Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah
View full book text
________________
कविजन जाणे कविनी कृतिथी,यति पण यति निरधार.शो०॥४॥ रंक उपर ते दया राखता, विद्यार्थी परव्हालजो; भक्त उपर ते भाव राखता, निर्मल ज्ञान विशाल. शो० ॥२॥ देशो देशथी भक्तो आव्या, भारे थइ गइ भीडजो; माय शोक नहीं दिलडां मांही, पूर्ण विरहनी पीड. शो० ॥६॥ राज लोकनी थाय न एवी, करी सामग्री त्यांयजो; अगर-कपूर-चन्दननी हेमां, पधराव्या मूरिराय: शो० ॥७॥ दडदड आँसु बहे सौ जननां, वचने वधु न जायजो; धन्य जीवन आ पर उपकारी, फरी क्यां दर्शन थाय. शो०॥८॥ क्रूर कठिन आ काल समयनी, नथी उचराती वातजो; नमता शेठ श्रीमंत जे चरणे, ए तनु आज वलाय. शो० ॥१॥ विश्व आत्मा जाण्यो जेणे, जाणी जग निज जातजो: अजित सागर मूरि अर्ज उच्चार, धन्य धन्य मातने तात.
शो० ॥१०॥
गुरुप्रार्थना.
ललित-छद. गुरु दयालनी वातशी कहुं ! विरह भावथी रोइने रहुं: अनुभवाब्धिनी ल्हेर आपता,गुरु ! विदारजो सर्व आपदा.॥१॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122