Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah
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४७
विषय शशीनां किरणो मंद पडी गयां, अघ उलूकना विरम्या शब्द अपारजो. सद्गुरु. ॥७॥ अजित सागरना दिलमां वस्या गुरुदेवश्री, सफल थयो छे मुज मानव अवतारजो, गुरु विण मुक्ति मले नही कदीए कोइने, गुरु विण क्यांथी आवे विमल विचारजो.सद्गुरु.॥८॥
श्री गुरु विरहे सातवार.
सखी पडवे ते पूरण प्रोत-ए राग. सखी ! आदित्य उग्यो आकाशे, व्हाणुं व्हातारे; म्हारां तन मन व्याकुल थाय, गुरु गुण गातारे. ॥१॥ सखी ! सोमेते आवी शान, वात विचारीरे, म्हारा घटमां सद्गुरु देव, अति उपकारीरे. ॥२॥ सखी ! आव्यो मंगलवार, मंगल करतोरे; म्हने सद्गुरु आव्या याद, आंसु भरतोरे. ॥३॥ सखी ! बुध वासरीये शुद्ध, कोणवतारे; लीधो गुरुए स्वर्गनो पंथ, दीलभरी आवेरे. ॥४॥ सखी ! गुरुए दर्शन दीव्य, गुरुनां करतारे; लक्षचोराशीनी जेह, हरकत हरतारे- ॥५॥
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