Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah
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गुरु० ॥२॥
गुरु० ॥३॥
गुरु० ॥४॥
पीपल उपर बेठेलां पंखी,
अगम प्रदेशे उडाव्यां. मति गति पहोचे नही तेवे पर्वत, ___अनुभव वारि वहाव्यां; गगन सिंहासने आसन शोभे,
____ त्यां अम स्थान ठराव्यां. ज्ञानगंगा जले स्नान कराव्यांने,
स्नेहनां पुष्प सुंघाव्यां; प्रेमनी पेटी उघाडी कृपाघन,
करुणानां पट पहेराव्यां. बालक पर जेवां लालन पालन,
ए लाड अमने लडाव्यां: काम क्रोध केरा ककडा करी अने,
दोषनां मूल दबाव्यां. कठिन कठोरता कापी दीधी अने,
साधन शुद्ध शिखाव्यां; अलख वस्तु म्हारा दीलमां लखावी,
लक्षण खलनां खपाव्यां. बुद्धिसागर गुरुमुज शिर शोभ्या,
शांतिनां क्षेत्र सोहाव्यां; अजितसागर कहे सद्गुरु चरणे,
भावने भक्ति भणाव्यां.
गुरु०॥५॥
गुरु० ॥६॥
गुरु०॥७॥
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