Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah

View full book text
Previous | Next

Page 62
________________ . . श्री गुरुमहिमा. ___राग उपरनोबुद्धिसागर गुरुदेवजी, जपीये आपनो जापजी; मनडाना मोह शमावजो, टाली तनडाना तापजी; बुद्धि-टेक० धर्म पाल्यो तमे धैर्यथी, कीयां धर्मनां कामजी, अन्यने धर्म पलावीयो, गया धर्मना धामजी. बुद्धि० ॥१॥ योगप्रदेशधी आवीया, पाल्यो योग आचारजी; सिद्धस्वरूपी सदा तमो, दीव्यज्ञान दातारजी. बुद्धि० ॥२॥ दर्शन फरी हवे क्यां मले ? क्यारे देशो सत्संगजी; क्यारे थाशे भव्यदर्शने, उरमांही उमंगजी. बुद्धि० ॥३॥ मनि मधुर मनमोहिनी, पंखी प्रगटनो प्रेमजी: विरही शिष्यो गुरुदेवना, करिये स्थिर मन केमजी ? बुद्धि० ॥४॥ पारम फेरा शुद्ध स्पर्शथी, लोह कुंदन थायजी. आत्मापरात्म बने नहीं, जीव पणुं नव जायजी%3B बुद्धि० ॥५॥ आत्मपरात्म बने तदा, मले सद्गुरु देवजी. उत्तम सत्संम आपतां; करतां सत्संग सेवजी. बुद्धि० ॥६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122