Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah

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Page 60
________________ ४९ अतिवकठिन ए कादवमांथी, निश्चयथी निकलाशे पण ए निश्चय गुरुविण क्यांथी ! पिंडमां आवशे पासे. गुरु ० ॥ ३ ॥ वृक्ष समग्रनी करीए कलम अने, सिंधुनी शाही सोहासे; पृथ्वीतणो कागल रुst करतां, शारद हाथ लखाशे. गुरु ० ॥ ४ ॥ आवशे पार समग्रनो तोपण, गुरुगुण केम गणाशे: कारण आत्मानां सौख्य अनंतां, केमज अंत पमाशे. गुरु ० ॥५॥ सद्गुरु माथे मल्या बुद्धिसागर, हुं पण आवेलो आशे; वस्तु अनुपमनुं रूप जणाव्युं, हैडामां देवने होंशे. गुरु० ॥ ६ ॥ तत्त्व अतत्त्वनां लक्षण आष्यां, वृत्ति न क्रोध कंकासे; अजितसागर पाम्यो इष्ट अनुभव, गुरुभक्ति केम भूलाशे. गुरु०॥७॥ १० श्रीमद् गुरुविरह. भेखरे उतारो राजा भरथरी - ए राग. सद्गुरु संत महातमा, गया धर्मने धामजी, विरहवडे व्याकुल बनुं, रटतां गुरुजीनुं नामंजी. सद्गुरु०टेक. अमने उगार्या असत्यथी, आपी सत्योपदेशजी; पापप्रपंच तजावीया, सुन्दर साधुने वेषजी. सद्गुरु० ॥ १ ॥ सूनुं लागे सहुतम विना, सूनो लागे संसारजी; विरह अनिल सतावतो, सुकवे काया आ वारजी. सद्गुरु ० ॥२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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