Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah
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५६
गुरुविरह तणा भाला वागे, गुरुपदमां अजितअनुरागे; प्रेमे वली वलीने पाय लागे.
१५
शरण० ||९||
श्रीमद् गुरुदेवस्तुति.
रघुपति राम हृदयमां रहेजोरे - ए राग.
रुडा गुरुदेव ? हृदयमांही रहेजोरे, दान ज्ञान अमृत तणां देजो: रुडा० ए टेक० तमो ज्ञानसागर गुरूदेवारे, सारी शीखवजो गुरु ? सेवारे; अमने भक्ति तणी देजो हेवा.
रुडा० ||१||
रुडी मूर्ति मनमांही भावेरे, विरह अश्रुने नयनमां लावेरे; दीव्य वाणीतों तन तलसावे.
रुडा० ||२||
योग अभ्यासना बीजा इन्दु.
शांतिकेरा तमो शुभ सिन्धुरे, एक जिनवरमां लक्ष बिन्दुरे; रुडा० ॥३॥ आपे जन्म सफल करो लीधोरे, प्रेम प्यालो पूरण तमे पीधोरे; उपदेश अनूपम दीधो.
रुडा० ||४||
जेजे देशमां आप पधार्यारे, भवसागरथी जन तार्यारे; अज्ञान तिमिरथी उद्धार्या.
रुडा० ||५||
मोटा महीपति राखता मानारे, नाम सांभली जन आवे झाझारे
सर्व शास्त्र ज्ञाता गुरुराजा.
रुडा० ||६||
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