Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah
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श्री सद्गुरुचरणपुष्पांजलि,
गरुडे चढी आवज्यो-ए राग. बुद्धिसागर सद्गुरु जाउं वारी:
जेणे मोक्षनी वात विचारी. बुद्धि. ए टेक. दया सर्व जनोपर लाव्या, एकसो आठ ग्रन्थ बनाव्या, . स्नेह साथे शिष्योए छपाव्या. बुद्धि० ॥१॥ जैनशास्त्रना उंडा अभ्यासी, प्रेमज्ञानना पूर्ण पिपासी. ... पृथ्वी उपर कीर्ति प्रकाशी. बुद्धि० ॥२॥ शुभ साहित्य केरारे शोखी, उंची दृष्टि सदैव अनोखी:. __ राग सर्व दीधा हता रोकी. बुद्धि० ॥३॥ आश्रम ठामोठाम स्थपाव्या, हाल जरुर वाला ते जणाया:
जैनवाल पवित्र भणाव्या. बुद्धि० ॥४॥ वली शास्त्रना भंडार स्थाप्या, उपदेश अनेकोने आप्या: कामभाव अंतरमाथी काप्या.
बुद्धि० ॥५॥ कल्पवृक्ष छे परउपकारी, जेनी छाया छे शीतल सारी: एवा उपकारी आनंद धारी.
बुद्धि० ॥६॥ मान पामता ज्या ज्यां ते जाता, पुण्यवंत देखी राजी थाता: __जेना गुण देशोदेश गवाता.
बुद्धि० ॥७॥ अमने आशरो एक तमारो, तारो हाथ झालीने अमारो: __ बीजे सुखडांनो जाण्यो उधारो. बुद्धि० ॥८॥ शिष्य अजितसागर पाय लागे, माधुं ज्ञानदान मागे; गुरुचरणे सदा अनुरागे.
बुद्धि० ॥९॥
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