Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah

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Page 63
________________ विरह प्रखर गुरु राजनो, तन मन व्याकुल थायजी. आंख्य थकी अश्रुभो वहे, नव शांति सोहायजी; बुद्धि० ॥७॥ अमने गुरु ? ना विसारशो, गांडां घेलां पण दासजी. अम अवयुण ना विलोकशो, अमने आपनी आशजी%3; बुद्धि० ॥८॥ अनंत प्रदेशी आतमा, एना अनुभवनारजी. अजितने आशिष आपशो, अमने आप आधारजी; बुद्धि० ॥९॥ १२ श्री गुरुअनुभव. क्षमा रमानाथने पूरण प्यारी-ए राग. गुरुए अमने अमृत पान कराव्यां, बीज कल्पतरु तणां वाव्यां; एबीज उख्यां फुल्यां तथा फाल्यां, उत्तम फल मीठां आव्यां: दीव्य देवने दीव्य प्रदेशे, ध्यानना योगे धराव्यां. गुरु० ॥१॥ अनुभव सागर छोले चढयो अने, फल तजी कार्य कराव्यां; Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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