Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ एकांत विषे बहु वसता, प्रभुजनने देखी हसता; क्षण धर्मविना नव खसतारे,तजी विश्वतणाज विलास. बुद्धि.॥४॥ पूरक कुंभक बहु साध्या, इश्वरने घटमां आराध्या, मनोभाव प्रभुमा वाध्यारे, तजी क्लेश अने कंकास.बुद्धि.॥५॥ राजा पण चरणे नमता, दर्शनथी मनमां शमता; तमे तत्पदमांहि रमतारे, थई सत्य गुरुना दास. बुद्धि.॥६॥ तमे साधी सिद्ध समाधि, तमे कापी जगनी व्याधिः तजी अंतर केरी उपाधिरे,करी भव भ्रमणानो हास. बुद्धि.॥७॥ थोडा तम सरखा थाशे, भजता प्रभु श्वासो श्वासे, अमथी क्यम गुण विसराशेरे,देजो प्रभुमा विश्वास. बुद्धि.|८॥ अमे लीधुं आपनुं शरणुं, हवे कापो जन्मने मरणुं, गुरु अमृतनुं छो झर[रे, सूरि अजितने ए आश. बुद्धि.॥९॥ गुरुपद पूजा. कलश. घोडीलारे ते क्यांथकी लाव्यारे-.ए राग. मारी जेवी मति प्होंची, तेवारे गुरुना गुण गाया. ए टेक. सद्गुरु मारी संसृति हरजो, अविचल राखजो मायारे. गुरुना० ॥१॥ संसारनी प्रीति स्वारथ सूधी, जर ज्योबन जायारे. गुरुना० ॥२॥ तपगच्छ हीरविजयसूरि पाटे, परंपरा मांही आव्यारे. गुरुना० ॥३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122