Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah
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अनंत कालनी खोयेली वस्तु; पाम्या छे खोली पटारो;
श्रावक० ॥५॥ बहु गुणवंता बुद्धिसागरजी, अमने हवे न विसारो; अजितसागर विनवे अति भावे, जेवो तेवो हुँ तमारो.
श्रावक०॥६॥
काव्य. विषयवाजिवशीकरणौजसे, मदविषोद्धरणोत्तमशक्तये । मतिमतां हृदि निश्चितमूर्तये, गुरुवराय सुधृपमहं यजे ॥१॥
ॐ ही श्री गुरुपदपूजार्थं धूपं समर्पयामि-स्वाहा.
अथ पंचमी दीपपूजा.
दुहा. योगाभ्यासी तन हतुं, योगाभ्यासी चित्त; योगाभ्यासी भावथी, रुडी राखी रीत. ॥१॥ चित्तवृत्तिओ रोकीने, कीधी एकाकार; ध्येय ध्यान ध्याता तणा, जाण्या गृढ प्रकार. ॥२॥ निर्मल जेनी पीतडी, निर्मल जेनी रीत: मन इन्द्रिय कबजे काँ, वात तजी विपरीत. ॥३॥ कोमल जेनी वाणीमां, वरसे अमृतधार; वली वलीने चरणमां, प्रणाम वार हजार. ॥४॥ शोध्यां आगम निगमने, वली जाण्यु वेदांत; अन्य धर्मना सारने, सहज कर्यों विज्ञात; ॥५॥
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