Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah
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४४
मनडुं सदाय भूडुं भमतुं भमे छे; भव्य गुरु हवे ना भमावजोरे, जैन धर्मरूपी रुडा बागमांही आसमे, वैराग्यनां बीज आवी वावजोरे; अनाचार अंतरना दूर करी नाखजा, आचारनी ध्वजाओ उठावजोरे. हिंसा वधे छे विश्वमांही आ समा विषे; अहिंसाना आनंद उडावजोरे. असंख्य प्रदेशी तमे आतमा अनूपछो, आत्मज्ञान नीरे न्हवरावजोरे: अजितसागर केरी विनती स्वीकारजो, शुद्धतानां पाणी पीवरावजोरे.
६
गजल.
गुरु० ||३||
गुरु० ||४||
गुरु० ॥५॥
गुरु० ॥६॥
गुरु० ||७||
गुरु० ॥८॥
ॐ ही श्री गुरुदेव छो, पावन परम परमेश्वरा,
हुं आपनुं समरण करूं, - थाजो सदाये सुखकरा; - ॐ० ॥ १ ॥ माता तमो पिता तमो भ्राता तमो बीजं नही, म्हारी तथा जाती तमो, वीजुं कथं इच्छं नही. - ॐ० ॥२॥ आकाशमां पातालमां, गुरु आप सम कंइये नथी,
आत्मा परात्म बनाववा, बीजुं सुखद साधन नथीः- ॐ० ॥ ३ ॥
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