Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah
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मूरिजी हीरविजय महाज्ञानी. नेमना शिष्य सहजसागर ध्यानी; परंपरा परम पावन जाणी, रटम०७N अनुक्रमे रविसागर जाण्या. तेओना शिष्य सुखसागर मान्या; तेओना बुद्धिसागर पीछाण्या, स्टण० ॥८॥ महायोगी ध्यानी जगत जाणे. श्रावक अने अन्य बधा माने; आचार्य पद सहु जन परमाणे, रटण ॥९॥ तेनोरं पदपंकज रजहुं छु. अजित अब्धि प्रेमेथी प्रणमुं छ: आशिष अंते सर्वे जीवोने दउँछु, रटण०॥१०॥
काव्य. त्रैलोक्यतारकगुणाय वरप्रदाय,
सर्वात्माने विहितजन्तुदयोदयाय। निर्वृत्तिधर्मपथदर्शकनायकाय, ___सम्यक् फलानि शुभदानि निवेदयामि ॥१॥
ॐ ह्री श्री सद्गुरुपदपूजार्थ फलानि समर्पयामि स्वाहा।। शास्त्रविशारद योगनिष्ठ श्रीमद्बुद्धिमागरसूरीश्वरशिष्यरत्नप्रसिद्धवक्ता जैनाचार्य श्रीमद्अजितसागरसूरिविरचित गुरुपदपूजा
समाता ॥
इति
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