Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah
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२१
वाणी वर्णन | करे, महद् पुरुषमहिमाय; केवल शरण स्वभावथी, प्राणी पावन थाय; ॥ ५ ॥
ढाल तेजेतरणिथीवडोरे-ए राग. प्रेमथकी परमात्मारे, पीडविषे पेखाय; कोटी उपाय करो छतारे, सद्गुरुथी समजाय, होपाणी सद्गुरु संगत कीजीयेरे; प्रेमसुधारस पीजीयेरे; थाय सफल अवतार. एटेक. शुं समजे मतिमंदतेरे. अनुभव केरोपंथ, वाणी वर्णन नव करेरे नवआवे कदी अंतः होपाणी सद्गुरु संगत कीजीयेरे, प्रेमसुधारस पीजीयेरेः थाय सफल अवतारः ॥१॥ किंमत सघला विश्वनीरे, एक तरफ अंकाय, पण किंमत आत्मातणीरे; कदीये केम कराय; होपाणी सद्गुरु संगत कीजीयेरे, प्रेमसुधारस पीजीयेरे, थाय सफल अवतार; ॥२॥ आत्माने नव ओलख्यो, देश रह्यो छे दूर: संगत सद्गुरुनी करोरे, हाजर होय हजूर; होपाणी सद्गुरु संगत० प्रेम० थाय० । पार्श्वमणिथी विश्वनारे, सुखनी प्राप्ति थाय; पण गुरुनी करुणा थकीरे प्राणी प्रभु बनी चाय; होप्राणी सद्गुरु० प्रेम० पाय०
भा बुद्धिसागरजी सद्गुरुरे; मलिआ मुजने एक;
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