Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah
View full book text
________________
साबर केरो सुखकारी किनारो; विजापुर गाम अंतर धारो. बुद्धि० ॥१॥ श्रावक तणी वस्ती घणी सारी, लागे प्रभु भक्तोने प्यारी: जिनालयो शोभे छे सुखकारी. बुद्धि० ॥२॥ पाटीदार प्रेमी पूरा शोभे छे, अहिंसक वृत्तने पाले छे दानी गुण केरो ल्हावो लेछे. बुद्धि० ॥३॥ तेमां गुरुए जन्म सुखद लीधो, मानव केरो जन्म सफल कीधो; संसारने बोध सिद्धो दीधो. बुद्धि० ॥४॥ गुरु कर्या सुखसागर स्वामी, खलकमांही राखी नही खामी; जोडी दृष्टि साचा धर्म स्हामी. बुद्धि० ॥५॥ करी गुरुसेवा खरी खांते, तज्या रागद्वेषने नीरांते; अजित कीर्ति प्रसरी बधे प्रांते. बुद्धि० ॥६॥
काव्य. सकलवृद्धिकराय महात्मने, निखिलकर्ममलक्षयकारिणे। गुरुवराय वरिष्ठगुणात्मने, जलमहं विमलं परिकल्पये ॥१॥
ॐ ही श्री गुरुपदपूजार्थं जलं समर्पयामि स्वाहा,
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122