Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah

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Page 18
________________ पीड अने ब्रह्मांडमां, भय गाजे छे काल; काले कोइ बचे नही, अंते काल कराल. ॥४॥ माटे शाणा समजीने, घटमां धरी वैराग; निर्भय देशे जाय छे, देश विरति अनुराग ॥५॥ ढाल-ओधव क्यारे आवशे वनमालीरे.-ए राग. श्रावक केरा वृत्तनी बलीहारीरे, अंते आतमने ले उगारी. श्रावक० ए टेक. प्रगट्यो श्रावकधर्ममां प्रेमरे, जेमा सुन्दर कुशल क्षेमरे: माटे तजीये कदी तेने केम ? श्रावक० ॥२॥ गुरुदेव श्रावक व्रत पालेरे. जुलु बोले नही कोइ कालेर; व्रतधारी सुधर्म विशाले, ___ श्रावक० ॥२॥ सुखसागर सद्गुरु पासेरे, श्रावकधर्म रह्या विश्वासेरे; मन वरताणुं धर्म उल्लासे, श्रावक० ॥३॥ वेचरदासर्नु मन रुडं गलियुरे, भाव भक्ति विषे दृढ भलियुरे; तृत जपमांही चित्तडं वलियु. श्रावक० ॥४॥ षडावश्यक स्नेहे साधेरे, भाव वैराग्यमां रुडो वाधेरे; सदा स्नेहे गुरुने आराधे. श्रावक० ॥५॥ दुर्लभ सद्गुरु केरी सेवारे, एवी सेवा मांही रुडा मेवारे; जेमां भाव वैरागना लेवा. श्रावक० ॥६॥ दीक्षा लेवामां प्रेम प्रगटियोरे, मोह विश्वनां सुख केरो मटियोरे: जैनधर्म हृदयमांही स्टीयो. श्रावक० ॥७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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