Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah
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मूढ बुद्धिनां मानवी, करतां तर्क अनेक; पण प्रमाण आगम विना, नावे सत्य विवेक ॥२॥ अंधारं अज्ञानमय, आगमदीप सुहाय; अंधारूं दीपक वडे, जाय हृदय समजाय ॥३॥ अंधजनोने लाकडी, अवनीपर आधार; ज्ञानअंध आगमथकी, निश्चित देशे जाय ॥४॥ ईश्वरने अवलोकवा, आगम सत्य प्रमाण: बुद्धिसागरनुं थयुं, आगममां शुभ ध्यान ॥५॥
ढाल- कानुडो न जाणे मारी प्रीत. ए राग. समकित माटे मद्गुरु देव,-केरुं शरण ग्रही ल्योरे. सम०ए टेक. शास्त्र श्रवणथी समकीत थाशे, जन्मोजन्मना रोगज जाशे; आनंद मंगल था हमेश, विभुने सहज वरी ल्योरे. सम०॥१॥ जे जे मार्ग प्रभू उर आवे. ते ते पथ सदगरु समजावे. पामे जेवु वावे तेवू, साचे ठाम ठरी ल्योरे. सम०॥२॥ अनादिकालथी आत्मभटकटतो,एक ठाम कदी नथी पल टकतो: शांति नथी वरी शकतो लेश, दीलडामांही डरी ल्योरे. सम०॥३॥ क्लेश बधा मनमाथी कापो, आत्मदेवने अनुभव आपो; स्थिरतामां मन स्थापो बेश, धणीनुं ध्यान धरी ल्योरे.सम०॥४॥ अखंड अनुभव थाशे सारो, देखाशे भवसिन्धु किनारो; भव तरवानो वारो एज, श्रेयस काम करी ल्योरे. सम०॥५॥
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