Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah
View full book text
________________
शास्त्र सांभलवाथी रहेज, विपदा वामेरे; अति दुर्लभ शिव पुरपंथ, पाणी पामेरे.
॥५॥ माटे शास्त्र श्रवण हररोज, कोडे करीयेरे; धरी आगममांही लक्ष, भवजल तरीयेरे. ॥६॥ बांधी प्रभुना संगाथे प्रीत, पीत विचारीरे; जैनधर्म साचो छ एम, दृढमति धारीरे; ॥७॥ को लक्ष विषेथी अलक्ष, पक्ष तजीनेरे, कीधी सद्गुरुनी सेवाय, स्नेह सजीनेरे. ॥८॥ माटे नरभव पामीने जेह. सत्संग करशेरेः तेनो लक्षचोराथी स्हेज, आत्मा उद्धरशेरे. ॥९॥ थयो जैन विषे अनुराग, शास्त्र श्रवणथीरे; थाय अजित जगतमांहि जित, जन्ममरणथीरे. ॥१०॥
काव्य. त्रिविधतापहराय शुभात्मने, जगति जन्मवतां सुखदायिने । कुमतिकर्दमन्दविशोषिणे, परिदधाम्यतिशीतलचन्दनम् ॥१॥
ॐ ही श्री गुरुपदपूजार्थं चन्दनं समर्पयामि स्वाहा.
सम्यक्त्व ग्रहणरूपा तृतीयपुष्पपूजा. ॥३॥
दुहा. आगमज्ञान विना कदी, मानव मोक्ष न जाय; वस्तुमात्रनां तत्त्व ते, आगमथी समजाय
॥११॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122