Book Title: Gurupad Puja
Author(s): Ajitsagarsuri
Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah
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क्लेशकर्म जाय छे ने आत्मसुख थाय छे; शीद जीव विश्वमांही आथडे; गुरुनी. ॥१॥ काम क्रोध नव रहेने-दोष दीलना दहे; आत्मनो विवेक रुडो आवडे गुरुनी. ॥२॥ मोह तणां मूल बधां, जाय सहज वातमां; उखेडी शकाय ज्ञान पावडे, गुरुनी. ॥३॥ व्हाल थाय नाथमां ने, आत्म आवे हाथमां; जाय छे अशांति शमतावडे; गुरुनी ॥४॥ आज्ञा शिर धारताने,-प्रेमधर्म पालता, केम जीव खोटा ख्यालमां खडे ? गुरुनी. ॥५॥ गुरु विना मुक्ति नही,-सर्व संत उच्चरे; स्हेजमां प्रभुनो पंथ पर वडे गुरुनी. ॥६॥ रुडी मुख सागरजी, सेवा गुरुनी सजी; पाप बीज सेक्यां ज्ञान तावडे, गुरुनी. ॥७॥ आशिष रुडी लीधीने, लीला ल्हेर तो कीधी; कालरूप सर्प केम आभडे, गुरुनी. ॥८॥ गुरुजी ज्ञान दाताने, आपे सुख शाता; आजित नरक द्वार ना नडे;
गुरुनी. ॥९॥
काव्य. भवभयक्षतिकर्मविधायकान् , शुभगुणाचरणोत्तमशिक्षकान् । शिवनिकेतनकेतनतुल्यकान्, परिदधामि पवित्रतराक्षतान् ॥१॥
ॐ ह्री श्री सद्गुरुपदपूजाथै अक्षतान् यजामहे स्वाहा ।
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