Book Title: Gommatsara Jivkand Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur View full book textPage 8
________________ .१३० प्रादि), तो कहीं ग्रन्थालरों के उद्धरण हिन्दी में मूल टीका में देकर फिर उसका मूल वाक्य तथा ग्रन्थोल्लेख आदि टिप्पण में किया है। इस तरह इस विषय में गुरुजी अप्रतिबद्ध रहे हैं ! किसी नियत पद्धति का निर्वाह सर्वत्र समरूपेण नहीं किया है। टीका में गणिनीय प्रकरणों को यथासम्भव कोठों द्वारा समझाया गया है [यथा-पृ. ४१, ४४, ४५, ५०, ५१, ५२, ५६, ३६८ आदि] जिससे विषय स्पष्ट हो सके। अपूर्वता--(१) जीवकाण्ड की यह पहली ऐसी टीका है जिसमें धवलादि के सैकड़ों प्रमाण दिये गये हैं तथा मुख्यतः उसी आधार से यह रची गई है। (२) गा. ५.१८ में ८ मध्यमांशों का खुलासा किया है जो पूर्व को किसी भी भाषा टीका में इतना स्पष्ट नहीं है। (३) गा. ३५२-५४ में श्रुतज्ञान के भंगों को विस्तारपूर्वक समझाया है, जो पहले किसी भी टीका में नहीं समझाया गया है। (४) विभिन्न ग्रन्थों के सहस्रों [कुल २७८५ टिप्परा हैं ] उद्धरणों के दर्शन टीका में होंगे। (५) किसी मुख्य सिद्धान्त-ग्रन्थ का कुछ भी अंश इस टीका में नहीं पाया हो, ऐसा नहीं हो पाया। (६) टोडरमल जी कृत भाषा टीका से भी प्रस्तुत टोका बड़ी है। टोडरमलजी की मात्र भाषा टीका (मूल ग्रन्थ की) लगभग उन्नीस हजार प्रलोक प्रमाण है जबकि प्रस्तुत टीका इसमें पीठिका (अठारह सौ श्लोक प्रमाण) तथा अर्थ संदृष्टि अधिकार (लगभग ५ हजार श्लोक प्रमाण) भी सम्मिलित कर दिया जाए तो भी सम्पूर्ण सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका लगभग पौणे छब्बीस हजार श्लोक प्रमाण ही होती है जिससे कि प्रस्तुत टीका कम नहीं है। विशेष इतना है कि माथा ७२८ की टीका (सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका में] ८८ पृष्ठ प्रमाण है परन्तु प्रस्तुत ग्रन्थ में गुरुजी ने उतनी विस्तृत टीका नहीं करके मात्र... पृष्ठ प्रमाण ही लिखी है [देखो पृ. ७८० ] क्योंकि वह सब विषय धवल पुस्तक में पूर्ण विस्तार से समस्त नक्शों सहित प्रकाशिन हो गया है तथा इतना दुरूह भी नहीं है। प्रस्तुत टीका में सहायक ग्रन्थ-मुख्तार सा. ने जीवकाण्ड की भाषा टीका करते समय निम्नलिखित शास्त्रों का उपयोग किया है---षट्खण्डागम, कषायपाहुडसुत्त, धवल, जयभवल, महाधवल, जयधवल (फलटण), प्राकृत पंचसंग्रह तथा उसकी विविध टीकाएँ, संस्कृत पंचमंग्रह, लब्धिसारक्षपणासार, गो. जी., गो. क., इनकी टीकाएँ मन्दप्रचाधिका ब सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका, तिलोयपण्णत्ती [सभी प्रकाशन | त्रिलोकसार तथा टीका, लोक विभाग, सिद्धान्तसार-दीपक, सिद्धान्तसारसंग्रह, कातिकेयानुप्रक्षा, आदिपुराण, हरिवंशपुराण, सुशीला उपन्यास, मूलाचार, उसकी प्राचारवृत्ति टीका, मूलाचार प्रदीप, प्राचारसार, वमनन्दिश्रावकाचार, चारित्रसार, चारित्रपाइड, द्वादशअनुप्रेक्षा, पुरुषार्थसिद्धि, रत्नकरण्ड, शास्त्रसारसमुच्चय, रत्नमाला, उपासकाध्ययन । अष्टसहस्री, परीक्षामुख, पालापपद्धति, प्रमेयरत्नमाला, सप्तमंगीतरंगिणी, स्यावाद मंजरी, [ १४ ]Page Navigation
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