Book Title: Gommatsara Jivkand Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur View full book textPage 6
________________ (२) उक्त भाषा टीका के आधार से स्व० ० दौलतराम जी ने हिन्दी पधानुवाद रूप रचना की। यह अप्रकाशित है।' (३) गुरूणां गुरुवर्य गोपालदास जी बरैया की प्रेरणा से १९१६ ई० में पं० खूबचन्दजी सिद्धान्तशास्त्री ने गो. जी. की संक्षिप्त, परीक्षोपयोगी, छात्रोपयोगी टीका लिखी जिसके अनेक संस्करण निकले हैं। इम टीका सम्बन्धी अनेक संशोधन गृरुजी (मुख्तार सा.) ने पं० खूबचन्द जी को भेजे थे, जिन्हें उन्होंने सादर स्वीकार किया था और तदनुसार तुतीय संशोधित संस्करण रायचन्द्र जैन शास्त्रमाला से प्रकाशित हुआ था। (४) सन् १६२७ में जीवकाण्ड को अंग्रेजी टीका रायबहादुर जे. एल. जैनी एम. ए. (सम्पा.-जन गजट) द्वारा सम्पादित व अनूदित होकर प्रकाशित हुई। जिसमें ब्र० शीललप्रसाद जी ने भी सहायता की थी। इसकी पृष्ठ संख्या ३४७ है तथा यह अजिताश्रम, लखनऊ से प्रकाणित है। (५) पं० श्री कैलाशचन्द्र सि. शास्त्रोन जोत्रकाण्ड तथा कर्मकाण्ड का भाषानुवाद नेमिचन्द्र की संस्कृत टीका के आधार से किया तथा संदृष्टियाँ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका से खोली। यह टीका सन् १९७७ (वि. सं. २०३४) में ज्ञानपीठ मे ४ पुस्तकों में प्रकाशित हुई है। (गो. जी. दो पुस्तकों में नथा गो. क. भो दी पुस्तकों में ।) उक्त सभी भाषाटोकाएँ टोडरमल्लीय सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका के आधार से बनी हैं और टोडरमल्लीय टीका प्रांजल नहीं है । उन्हें धवल, जयधवल, महाधवल के दर्शन प्राप्त नहीं हुए, अन्यथा सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका का परिष्कार वे स्वयं कर लेते । बस, इसी एक मुख्य कारण से मुस्तार सा. ने इस नवोन टीका की धवल, जयधवल व महाधदल के आधार से रचना की है, जिसमें प्रेरक तथा सम्बल-प्रदायक रहे हैं पूज्य प्रा. क. १०८ श्री श्रुतसागर जी महाराज एवं प्रा. वर्धमानसागर जी महाराज। पं. टोडरमल जी को धबन्नादि के दर्शन नहीं हुए थे, इसके प्रभारणस्वरूप देखिए (अ) लब्धिसार को प्रथम गाथा की उन्थानिका में लब्धिसार की रचना को जयधवल के पन्द्रहवे अधिकार ( चारित्रमोहक्षपण) से बताया है । परन्तु यह गलत है, क्योंकि लब्धिसार अर्थात् लब्धिसार-क्षपणासार की रचना तो जय धवल के दर्शनमोह उपशामना, क्षपणा तथा चारित्रमोह उपशामना व क्षपणा नामक अधिकारों से हुई है, न कि मात्र पन्द्रहवें अधिकार से । बह उत्थानिका द्रष्टव्य है : श्रीमन्नेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवतिसम्यक्त्व चूडामणिप्रभृतिगुणनामांकितचामुण्डरायप्रश्नानुरूपेण कषायप्राभृतस्य जयधवलायद्वितीय सिद्धान्तस्य पंचवशानां महाधिकाराणां मध्ये "पश्चिम १. गो. जी. प्रस्ता. प.११ रामचंद्रशास्त्रमाला । २. उस्मानाबाद के स्व० नेमिचन्द्र जी वकील ने कर्मकाण्ड के भाग पर मराठी में एक सुन्दर रचना की है, वह छाप भी चुकी है। (गो. जी. प्रस्ता. पृ० ११ सयचन्द्र शास्त्रमाला चतुर्थ संस्करण) [ १२ ]Page Navigation
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