Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ १०-१२ घन्टे प्रतिदिन कार्य करते थे । उन दिनों आचार्यकल्पश्री का कहना था कि "जीवकाण्ड तथा लब्धिसार-क्षपणासार का काम भी आपको ही करना है, क्योंकि शुद्धि का यह कार्य आपके जीवन काल में हो गया तो ठीक, अन्यथा बाद में इस कार्य को कोई पूरा करने वाला नही है।" बस, आचार्यकल्पश्री की उक्त प्रेरणा तथा मुनि वर्धमानसागर जी ( सम्प्रति आचार्य श्री ) के प्रबल सम्बल अनुरोध से ही कर्मकाण्ड के कार्य की पूर्णता के पश्चात् लब्धिसार-क्षपणासार का कार्य भी हुआ तथा अन्त में गुरुजी ने जीवकाण्ड की टीका भी लिखी । - पूर्व टीकाएँ (संस्कृत / कन्नड़ ) - ( अ ) गोम्मटसार पर सर्वप्रथम एक पंजिका टीका है जो ५००० श्लोक प्रमाण है, भाषा प्राकृतमिश्रित संस्कृत है । इसके रचयिता गिरिकीति हैं। टीका का नाम पंजिका या गोम्मटसार टिप्परण है। इस टीका का निर्माण शक सं. १०१६ ( वि० सं. ११५१ ) में कार्तिक शुक्ला में हुआ । मन्दप्रबोधिकाकार ने इस टीका को सहायता से अपनी जीवकाण्ड टीका लिखी है। इस अप्रकाशित ग्रन्थ की एक प्रति पं. परमानन्दजी शास्त्री के पास दिल्ली में है । (आ) मन्दप्रबोधिका टीका गो. जी. की आद्य ३८२ गाथाओं पर ही है, अर्थात् यह टीका अपूर्ण • भाषा संस्कृत है तथा इस टीका के रचयिता श्रभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती है। केशत्रवर्ती ने इस टीका की सहायता से अपनी टीका (कंटकी भाषा कन्नड़ टीका) बनायी है। (इ) तृतीय टीका केशयवर्णी रचित जीवतत्वप्रदीपिका है। इसकी भाषा संस्कृत मिश्रित कन्नड़ है तथा रचनाकाल ई. सन् १३५६ है । - (ई) जीवतत्त्वप्रयोपिका संस्कृत - यह चतुर्थ टीका है जो नेमिचन्द्र द्वारा संस्कृत भाषा में रवी गई है। यह टीका केशववर्णी की संस्कृत मिश्रित कन्नड़ टीका का ही संस्कृत रूपान्तर मात्र है । नेमिचन्द्र ज्ञान भूषण के शिष्य थे। टीका ईसा की १६ वीं शती के प्रारम्भ की है। ये यदि इन नेमिचन्द्र ने केश्ववर्ती की टीका को संस्कृतरूप नहीं दिया होता तो पं. टोडरमल जी सम्यग्ज्ञान चन्द्रिका (भाषाटीका) नहीं बना पाते, यह सत्य है । भाषा टीकाएँ - ( १ ) साधिक सात दशक पूर्व गांधी हरिभाई देवकरण ग्रन्थमाला मे भाषा टीका पहली बार प्रकाशित हुई। इस शास्त्राकार ग्रन्थ के सम्पादक पं० गजाधरलाल जी न्यायतीर्थ तथा पं० श्रीलाल जी कायती थे । यह टीका १३३० पृष्ठों में है । इसमें मूल ग्रन्थ ( प्राकृत गाथाएँ) के साथ दो संस्कृत टीकाएँ (अभयचन्द्रीय मन्दप्रबोधिका तथा नेमिचन्द्रीय जीवतत्त्वप्रदीपिका) तथा एक ढूंढारी भाषा टीका भी थी। यह हूंढारी ( हिन्दी से मिलती-जुलती) भाषा टीका पं० टोडरमल जी कृत है, टीका का नाम सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका है। टोडरमल जी ने राजमल साधर्मी की प्रेरणा से यह टीका लिखी थी जो वि. सं. १८१८ में पूरी हुई । १. गो. जी. मन्दप्रबोधिका गा० ८३ की टीका । २. अनेक वर्ष ४ किरण १. ११३ । [ ११ ]

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 833