Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गोम्मटसार जीवकाण्ड
उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात में एक जोड़ने पर जघन्यपरीतानन्त होता है। और जघन्यपरीतानन्त में एक घटाने पर उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात होता है। पल्य को दस कोड़ाकोड़ी से गुणा करने पर सागर होता है। जगतश्रेणि में सात का भाग देने से राजू होता है। जघन्य युक्तासंख्यात का वर्ग करने पर जघन्य असख्यातासंख्यात होता है। सूच्यंगुल का घन करने पर घनांगुल होता है। प्रतरांगुल का वर्गमूल निकालने पर सूच्यंगुल होता है। लोक का घनमूल निकालने पर जगतश्रेणि होती है, इत्यादि। इस प्रकार अलौकिक गणित में संकलन आदि होने पर जो प्रमाण होता है, उसका नाम मात्र कहा है। और कहीं संकलन आदि होने पर जो प्रमाण हुआ, उसका नाम नहीं कहा हैकेवल संकलनादि ही कहा है; क्योंकि सब संख्यात, असंख्यात और अनन्तों के भेदों के नाम वक्तव्य रूप नहीं हैं। जैसे जीवराशि से अधिक पुद्गलराशि कही है अथवा सिद्धराशि से हीन जीवराशि कही है या असंख्यात गुणा लोक कहा है, या संख्यात प्रतरांगुल से भाजित जगतप्रतर कहा है, या पल्य का वर्ग अथवा उसका घन कहा है अथवा केवलज्ञान का वर्गमूल कहा है या आकाश के प्रदेशराशि का घनमूल कहा है।
त्रैराशिक का भी कथन आता है। अतः उसे भी समझना चाहिए। त्रैराशिक में तीन राशियाँ होती हैं-प्रमाण, फल, इच्छा। विवक्षित प्रमाण से जो फल प्राप्त हो, वह प्रमाणराशि और फलराशि जानना। और अपना इच्छित प्रमाण को इच्छाराशि जानना। फल को इच्छा से गुणा करके प्रमाण का भाग देने पर जो फल आवे, उसे लब्ध कहते हैं। जैसे पाँच रुपये का सात मन अन्न आता है, तो सात रुपये का कितना अन्न आवेगा। ऐसा त्रैराशिक करने पर प्रमाणराशि पाँच, और फलराशि सात। सो फल से इच्छा को गुणा करके प्रमाण का भाग देने पर उनचास का पाँचवाँ भाग प्रमाण आया। सो नौ मन और चार मन का पाँचवाँ भाग मात्र लब्ध आया। इसी प्रकार छह सौ आठ सिद्ध छह महीना आठ समय में होते हैं, तो सब सिद्ध कितने काल में हुए। ऐसा त्रैराशिक करने पर प्रमाणराशि छह सौ आठ, फलराशि छह मास आठ समयों की संख्यात आवली। इच्छाराशि सिद्धराशि। फल को इच्छा से गुणा करके प्रमाण का भाग देने पर संख्यात आवली से गुणित सिद्धराशि मात्र अतीत काल का प्रमाण लब्ध आता है।
शेष कथन टीका में यथास्थान आया है सो जानना।
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