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का विरोध किये बिना आत्मानुभूत सत्य-तथ्यों के क्रमबद्ध और युक्तियुक्त विश्लेषण के कारण दर्शन भी है।
जैन दर्शन का चरम लक्ष्य आत्मानंद की उपलब्धि है और वह आत्मानन्द मानसिक, वाचिक और कायिक शुद्धता द्वारा ही उपलब्ध होता है। विचारों की उदारता और आचार की पवित्रता ही वास्तविक अहिंसा है; और इसी नींव पर जैन दर्शन का भव्य प्रासाद शोभायमान है। सहिष्णुता एवं आचार की अहिंसा सृष्टि के लिए उदाहरण स्वरूप है। भाषा, रस्मोरिवाज, जीवन पद्धति और आचारपद्धति की विभिन्नता भी यहाँ के जन मानस को 'भारतीय' एकता में बांधे हुए है।
भारत में तत्वज्ञान समीक्षात्मक रहा है। सभी दार्शनिकों ने अपने-अपने स्तर पर अनेक विषयों पर चिंतन किया। ईश्वर जैसे विषय पर भी मुक्त चिंतन हुआ। बौद्ध और जैन संप्रदायों ने ईश्वर को कर्त्ता या सृष्टि के हेतुभूत मानने में अस्वीकृति देते हुए कतई संकोच नहीं किया। भौतिकवादी चार्वाक ने तो ईश्वर को नकार ही दिया। विचारों के विकास एवं अभिव्यक्ति में भारतीय तत्वज्ञान जितना उदार रहा है, अन्य देशों में शायद ही इसकी कल्पना की जा सकती है । '
भारतीय दर्शन पद्धति की विशेषताः- भारतीय दर्शन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसकी कोई मंजिल है। यद्यपि भारतीय दर्शन पर निराशावादी होने का आरोप लगाया जाता है, परंतु यह भ्रम मात्र है, क्योंकि भारतीय दर्शन दुःखों का विवेचन मात्र करके ही नहीं रह जाता, अपितु दुःखमुक्ति का मार्ग भी बताता है। भारतीय दर्शन पद्धति जनता की आवश्यकता की पूर्ति करती है। आधि, व्याधि पूरित दैनिक जीवन से हटकर मात्र कल्पनाओं की दुनिया में विचरण करना, भारतीय दार्शनिक परम्परा को अस्वीकार्य है। राग द्वेष रहित इस प्रकार का जीवन जीना जिससे स्थायी और अक्षय सुख उपलब्ध हो, यहाँ के दार्शनिकों की पहचान है । व्यास एवं विज्ञानभिक्षु का यह कथन सत्य है कि जिस प्रकार चिकित्साशास्त्र रोग, रोगनिदान, आरोग्य तथा भैषज्य, इन चार तथ्यों के यथार्थ निरूपण की प्रवृत्ति अपनाता है उसी प्रकार आध्यात्मशास्त्र दुःख, दुःखहेतु, मोक्ष एवं मोक्ष के उपाय को बताता है। 2 1. भारतीय दर्शन: बलदेव उपाध्याय पृ. 11
2. यथा चिकित्साशास्त्रं चतुर्व्यूहम्-रोगी, रोगहेतुः आरोग्यं भेषजमिति । तदिदमपि शास्त्रं चतुर्व्यूहम्। तद् यथा-संसार संसारहेतुः मोक्षः मोक्षोपायः इति । व्यासभाष्य 2.15 सांख्यप्रवचन भाष्य पृ. 6
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