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जहाँ भारतीय दर्शन संसार से मुक्ति या दुःख से मुक्ति के विचार और पद्धति पर प्रतिष्ठित है वहीं पाश्चात्य विचारपद्धति के विकास के दूसरे कारण हैं।
पाश्चात्य दर्शन की विशेषता एवं पद्धतिः-लिटी की यह सर्वप्रसिद्ध उक्ति है कि दर्शन का जन्म आश्चर्य से होता है। पाश्चात्य दर्शन के इतिहास में यह बात स्पष्ट झलकती है कि उनके जीवन का लक्ष्य नाम के आधार पर प्रज्ञावान् या बुद्धिमान होना ही है। कुछ ही अपवाद मिल सकते हैं जिन्होंने आचरण शुद्धि तथा मन की परिशुद्धता के आधार पर परम सत्ता के साक्षात्कार को अपना उद्देश्य और आदर्श माना है; और यह आदर्श भी प्राच्य है न कि पाश्चात्या पाश्चात्य विद्वान् तो आचारण की अपेक्षा ज्ञान पर अधिक जोर देते हैं।
ब्रिटेन के विश्वविख्यात रसेल के अनुसार दर्शन का अपना कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है; वह धर्म एवं विज्ञान के महत्व की वस्तु है। रसेल के अनुसार विज्ञान एवं धर्मशास्त्र के अधिकार क्षेत्र के मध्य एक ऐसी अनाथ अथवा विवादास्पद भूमि (No man's Land) होती है जिसके ऊपर नित्य ही दोनों ओर से आक्रमण होते रहते हैं; यही विवादास्पद भूमि दर्शनशास्त्र है।
दर्शन शब्द की व्युत्पत्ति एवं उसका अर्थः-'दर्शन' शब्द के तीन अर्थ. सभी दर्शनों में प्रसिद्ध हैं- (1) व्यवहारभाषा में घटदर्शन आदि, अर्थात् चाक्षुषज्ञान के अर्थ में, (2) आत्मा इत्यादि तत्वों के साक्षात्कार के अर्थ में (3) एवं न्याय, सांख्य आदि निश्चित विचारसारणी के अर्थ में दर्शन शब्द का प्रयोग सर्वसम्मत है। परंतु जैन दर्शन में 'दर्शन' शब्द का जो प्रचलित अर्थ है वह अन्य स्थानों पर उपलब्ध नहीं होता। जैन परम्परा में श्रद्धा के अर्थ में दर्शन शब्द का प्रयोग प्राप्त होता है। इसी तरह वस्तु के निर्विशेष सत्तामात्र के बोध को भी दर्शन कहा जाता है।' दर्शन चाहे चाक्षुष हो, अचाक्षुष हो या आवधिक, दर्शन मात्र दर्शन होता है, वह न सम्यग् होता है और न मिथ्या। 1. "फिलॉसफो बिगिन्स इन वंडर" भारतीय दर्शन भाग 2 (डा. राधाकृष्णन्) पृ. 9 से उद्धृत 2. पाश्चात्य आधुनिक दर्शन की समीक्षात्मक व्याख्या का विषय प्रवेश पृ. 1 याकूब मसीह 3. वही 4. बट्रेण्ड रसेल : हिस्ट्री ऑफ वेस्टर्न फिलोसाफी इन्ट्रोडक्शन पृ. 10. 5. जगदीश सहाय श्रीवास्तव : ग्रीक एवं मध्ययुगीन दर्शन का वैज्ञानिक इतिहास 1.1 6. तत्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्" त.सू. 1.2 7. "विषयविषयिसन्निपातान्तरसमदभतसत्तामात्रगोचरदर्शनात. प्रमाणनय. 2.7
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