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के बल चलने वाले सर्प आदि और भुजपरिसर्प-भुजा के बल चलने वाले नोलिये आदि।
प्रज्ञापना में आगे एकखुरा, द्विखुर, गण्डीपद, एवं नखपाद के भेद और नाम बताये हैं। - इनमें जो संमूच्छिम हैं वे नपुंसक हैं और जो गर्भज हैं स्त्री, पुरूष और नपुसंक तीनों है।'
प्रज्ञापना में स्थलचर को उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प तिर्यंच पंचेन्द्रिय की अपेक्षा से दो भेद वाला भी कहा है और उनके नाम बताये हैं।' ___ ये भी संमूच्छिम और गर्भज दोनों प्रकार के हैं तथा संमूछिम नपुंसक एवं गर्भज स्त्री, पुरूष और नपुंसक तीनों होते हैं।'
खेचर तिर्यंच पंचेन्द्रियः-खेचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय चार प्रकार के है- चर्मपक्षी, लोमपक्षी,समुद्गक पक्षी, विततपक्षी।'
चर्मपक्षी-जिनकी पाँख चमड़े की हो जैसे चमगादड आदि। जिनकी पाँखे रोएदार हो वे रोम या लोमपक्षी, जिनकी पांखें उडते समय पेटी जैसी रहे जैसे हंस कलहंस आदि, वे समुद्गक पक्षी और जिनके पंख फैले ही रहे, वे विततपक्षी। (ये मनुष्य क्षेत्र में नहीं हैं) ये भी संमूच्छिम तथा गर्भज दो प्रकार से निरूपित किये गए हैं तथा जो संमूच्छिम हैं उन्हें नपुंसक और जो गर्भज हैं उन्हें स्त्री, पुरूष और नपुंसक के भेद से विभक्त किया है।'
मनुष्य जीवों के प्रकारः-मनुष्य दो प्रकार के होते हैं। संमूच्छिम और गर्भजा तीनों लोकों में ऊपर, नीचे और तिरछे देहका चारों ओर से मूर्छन अर्थात् ग्रहण होना संमूर्च्छन है। इसका अभिप्राय है, चारों ओर से पुद्गलों का ग्रहण
1. जीवविचार 21 2. प्रज्ञापना 1.71.74 3. प्रज्ञापना 1.75
4. प्रज्ञापना 1.76 83.85 5. प्रज्ञापना 1.84.85 6. प्रज्ञापना 1.86 एवं जीवविचार 22. 7. प्रज्ञापना 1.87 90 8. प्रज्ञापना 1.92
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