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संस्थानः-(आकार) संस्थान पाँच प्रकार का होता है। परिमण्डल संस्थान वृत (गोल) संस्थान, त्रयंस संस्थान, समचतुस्र (चौरस) संस्थान और आयत (लंबे) संस्थान।'
इन वर्ण, गंध, रस, स्पर्श और संस्थान से युक्त ही पुद्गल हो सकता है। ऐसा नहीं कि एक भौतिक पदार्थ में वह गुण हैं, दूसरे में नहीं।
वैशेषिक दर्शन की मान्यता ठीक इसके विपरीत है। वैशेषिक नौ द्रव्य मानते हैं। इन नौ द्रव्यों के अपने-अपने गुण है।
रूप, रस, गंध तथा स्पर्श गुण से युक्त जल रूप तथा उष्ण स्पर्ष गुण से युक्त अग्नि और स्पर्श गुण से युक्त वायु है, परंतु जैन दर्शन की यह मान्यता नहीं है। तर्क से भी इस बात की सिद्धि हो सकती है। प्रत्येक पदार्थ में चारों ही गुण पाये जाते हैं, चाहे वह पृथ्वी हो या जल। यदि ऐसा नहीं होता तो पृथ्वी को विज्ञान द्वारा जल बना दिये जाने पर उसमें से गंध गुण कहाँ जाता है और जल को पृथ्वी बनाने पर उसमें जल गुण कहाँ से आता है। क्योंकि यह तो निर्विवाद है कि किसी में किसी प्रकार का गुणोत्पाद नहीं किया जा सकता। अतः प्रत्येक पुद्गल स्कंध में चारों गुण मानने ही होंगे।
वास्तव में कोई भी पुद्गल ऐसा नहीं है जो रूप, रस, गंध और स्पर्श रहित हो। यह अलग बात है कि कोई गुण किसी में व्यक्त है किसी में अव्यक्त।
यह विवेचन दो नय की अपेक्षा से चलता है। भगवती सूत्र में गुड़ और भ्रमर के उदाहरण द्वारा यह विवेचन स्पष्ट किया गया है। व्यवहार दृष्टि से गुड़ मीठा है, परंतु निश्चय नय की दृष्टि से गुड़ पाँच वर्ण, दो गंध, पाँच रस और आठ स्पर्श वाला होता है। भ्रमर काला है, तोते की पाँख हरी है, मजीठ लाल है, हल्दी पीली है, शंख सफेद है और पटवास (कपड़े में सुगंध देने वाली पत्ती) सुगंधित है। लाश दुर्गंध युक्त है, नीम कड़वा है, सूंठ तीखी है, कपिठ कसैला है, इमली खट्टी है आदि, परंतु यह व्यक्त गुण है
और व्यवहार दृष्टि से है, परंतु निश्चय दृष्टि से तो पाँचों वर्ण, दो गंध, पाँच रस, आठ स्पर्श सबमें होते ही है।' 1. उत्तराध्ययन 36.21 2. भारतीय दर्शन भाग 2. डॉ राधाकृष्णन पृ. 204. 3. भगवती 18.6. 1.5
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